क्या है ताजमहल पर मनोज मुंतशिर के दावे का सच?
मनोज मुंतशिर ने हाल ही में एक वीडियो में विश्व विरासत ‘ताजमहल’, शाहजहाँ एवं मुगलों पर अनैतिहासिक टिप्पणियाँ की हैं।
दावा
उनका दावा है कि उन्होंने जो कुछ कहा वो उनके रिसर्च पर आधारित है। वे अपने रिसर्च का आधार विकिपीडिया को बताते हैं। आइये उनके द्वारा कही गई बातों का ‘फैक्ट चेक’ करते हैं।
उनका पहला आक्षेप है कि जब शाहजहाँ ताजमहल बनवा रहा था उसी समय 35 लाख लोग भुखमरी का शिकार होकर दम तोड़ चुके थे।
जबकि वास्तविकता यह है कि दुर्भिक्ष या अकाल अक्टूबर 1631 में समाप्त हो चुका था और ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में आरंभ हुआ। सम्भवतः 1632 में ताजमहल की नींव भी नहीं डाली जा सकी थी। ताज़महल का निर्माण 1632 से 1653 तक लगभग 22 वर्षों तक चला अतः दुर्भिक्ष या अकाल और ताज़महल के निर्माण को आपस मे जोड़कर श्रोताओं को बरगलाने की कोशिश हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण है।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पूर्व में बनाए अपने कुछ वीडियोज़ में मनोज मुंतशिर यह विरोधाभास से भरी बात कहते देखे जा सकते हैं कि ” मुगलों ने कोई ताज़महल नहीं बनवाया यह तो ‘तेजो महल’ था ।” जबकि इस वास्तविकता से कोई भी समझदार व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता कि ताज़महल मुख्यतः इस्लामिक कला का उदाहरण है।
- शाहजहाँ के चरित्र और राज्यकाल का आलोचनात्मक मूल्यांकन करते हुए आर सी मजूमदार लिखते हैं कि “1630 32 के दुर्भिक्ष के समय उसने जनता का कष्ट दूर करने के लिए बहुत कुछ किया।
- इसी प्रकार डॉ कामेश्वर प्रसाद लिखते हैं कि “दक्षिण में पढ़ने वाले भीषण दुर्भिक्ष के समय शाहजहां ने राहत कार्य में व्यक्तिगत दिलचस्पी ली ।”
- अब्दुल हमीद लाहौरी भी वर्णन देता है कि बादशाह ने बुरहानपुर, अहमदाबाद और सूरत के अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे गरीबों के खाने पीने की पर्याप्त व्यवस्था करें। आगे यह भी आदेश दिया गया कि जब तक महामहिम बुरहानपुर में रहे तब तक ₹5000 हर सोमवार को योग्य गरीबों में वितरित किए जाए ।
- ताजमहल के निर्माण काल में बड़ी संख्या में कारीगरों और मजदूरों सहित विभिन्न लोगों को रोजगार के अवसर या व्यवसाय मिलता रहा। ऐतिहासिक शोध बताते हैं कि लगभग 20000 कारीगर ताजमहल के निर्माण में लगे हुए थे।
मनोज मुंतशिर का दूसरा दावा
दुर्भिक्ष के समय शाहजहाँ ने एक मक़बरे पर नौ करोड़ रुपए खर्च कर दिए जितने में पूरे देश की गरीबी मिट सकती थी।
- समकालीन स्रोत ताजमहल की लागत 40-50 लाख बताते हैं । कहीं-कहीं यह विवरण 9 करोड़ भी मिलता है पर जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि ताजमहल का निर्माण 1632 में आरंभ हुआ एवं 1653 तक चला अतः ताजमहल में लगने वाली राशि केवल 1632 में ही इकट्ठे नहीं लग गई बल्कि क्रमशः 1653 तक अर्थात 22 वर्षों में धीरे-धीरे खर्च की गई होगी । अतः उनके इस दावे में भी कोई दम नहीं दिखता ।
मुंतशिर आगे यह दावा करते हैं कि एक एजेंडे के तहत बाएं हाथ से इतिहास लिखने वाले इतिहासकार बताते हैं कि ताजमहल प्रेम की निशानी है।
- पर दक्षिणपंथी इतिहासकार आरसी मजूमदार लिखते हैं कि “मुमताज महल से उसने 1612 में विवाह किया था । उसके लिए उसे अगाध प्रेम था दंपत्ति ने 19 वर्षों तक सफल सुखी जीवन बिताया ।ताजमहल दांपत्य प्रेम के अद्वितीय स्मारक के रूप में खड़ा है।”
- इसी प्रकार ग़ैर वामपंथी इतिहासकार आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव लिखते हैं कि ” मुमताज महल मृत्यु पर्यंत अपने पति की प्रिय बनी रही। वह शाहजहां की मुख्य पत्नी थी और उसको ‘ मल्लिका ए जमानी ‘ की उपाधि प्राप्त थी” वह आगे लिखते हैं कि ‘ताजमहल दांपत्य प्रेम का अद्वितीय स्मारक है।”
मनोज मुंतशिर आगे मुगलों का उपहास करते हुए बोलते हैं कि “जब हमारे यहां अजंता, एलोरा, कोणार्क, खजुराहो थे तब समरकंद फरगना में टॉयलेट नहीं थे और हमारे यहाँ यह(मुग़ल) ताजमहल बनवाने आए थे सच्चाई यह है कि उस समय यह खुले में शौच करते थे।”
- पर मुंतशिर की यह बात भी हास्यास्पद लगती हैं क्योंकि उस समय भारत में भी खुले में ही शौच जाया जाता था । इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से भारत विश्व में सबसे ज्यादा टॉयलेट बनवाने का कीर्तिमान रच रहा है ।
साहिर लुधियानवी की पुस्तक ‘तल्खियाँ’ से प्रेरित होकर अपनी काव्य यात्रा शुरू करने वाले और तमाम मुस्लिम शायरों से प्रेरणा पाने वाले मुंतशिर यह भी कहते हैं कि हमारे यहाँ कालिदास हुए हैं और ये मुगल कहते हैं कि हमने कविताएं लिखना उनसे सीखी।
- मुंतशिर का यह कहना निश्चित तौर पर व्हाट्सएप छाप विकिपीडियाई ज्ञान पर आधारित होगा। वास्तविकता यह है कि जगन्नाथ पंडित शाहजहाँ के राजकवि थे। कवीन्द्र आचार्य सरस्वती( बनारसी) और कवि सुन्दरदास पर सम्राट की विशेष कृपा थी। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं।
पर मुंतशिर ने विकिपीडिया से परे कोई क़िताब रिसर्च के लिए उठाई होती तो पता होता । इतिहास देश काल और परिस्थितियों से प्रभावित होता है, मनोज मुंतशिर इसका अतिक्रमण करते हुए अनर्गल प्रलाप करते हुए नजर आते हैं। वे समकालीन स्रोतों की जगह विकिपीडिया या गूगल का सहारा लेते हैं और उन्हें अपने तथाकथित रिसर्च का आधार बताते हैं ।
- समकालीन स्रोत हों या वैदेशिक या आधुनिक सभी सर्वसम्मति से इस मत का समर्थन करते हैं कि शाहजहाँ का शासनकाल मध्य काल का स्वर्ण युग था ।
मुंतशिर के लिए किसी ट्रोलर ने ट्वीटर पर हरिशंकर परसाई जी को कोट करते हुए कमेंट्स किया था कि “मूर्खता से पैदा हुआ आत्मविश्वास सबसे बड़ा होता है।” मुंतशिर पर सटीक बैठता है। मुंतशिर इसी ट्रोलर को प्रतिक्रिया देते हुए लिखते हैं कि ” बिना तथ्यों की प्रमाणिकता जाने, अपनी अल्पज्ञता को प्रदर्शित करने वाले को बेअकल कहते हैं, मंदबुद्धि कहते हैं या ….(ट्रोलर का नाम) कहते हैं, ये लिखना परसाई जी भूल गए। पूरा मसला तो समझ लीजिये पोंगा पंडित जी।”
मुंतशिर को अपने ही इस कथन के आधार पर अपना मूल्यांकन करके देखना चाहिए।
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