अंबेडकर सप्ताह: जब सावरकर ने किया अंबेडकर का अपमान
जब सावरकर ने किया अंबेडकर का अपमान
एक रोचक विषय के साथ आपके बीच में हूँ – अंबेडकर और सावरकर का रिश्ता? आप संपत की किताब पढ़िए या सावरकर के कुछ और जीवनीकारों की किताब पढ़िए, वह बताने की कोशिश करते हैं और साबित करने की कोशिश करते हैं कि सावरकर अंबेडकर का बड़ा सम्मान करते थे। लेकिन हकीकत क्या है? उसके लिए सावरकर समग्र से, जो 10 खंडों में प्रकाशित हुआ है, कुछ उद्धरण पढिए।
एक जमाने में सावरकर साहब जो है, वह दलितों के साथ सहभोज वगैरह का कुछ कार्यक्रम चला रहे थे। जिस जमाने में वह रत्नागिरि में थे, अभी अंडमान से तो छूट गए थे लेकिन जेल से उनकी पूरी तरह से रिहाई नहीं हुई थी। वह रिहाई 1937 में हो पायी।
अंबेडकर को, सहभोज का निमंत्रण दिया सावरकर ने
1935 में जब सावरकर को भत्ता मिलता था और उस भत्ते के सहारे वह रत्नागिरि में रहा करते थे, वहाँ पर वह कुछ मंदिरों में दलितों के साथ सहभोज वगैरह का कार्यक्रम चला रहे थे। ऐसे ही एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 13 नवंबर 1935 को वह कार्यक्रम था। उस में शामिल होने के लिए उन्होंने एक पत्र लिखा था अंबेडकर को, जिसमें सहभोज का निमंत्रण था। इसके पहले भी वह पतित पावन मंदिर था।
उसके उद्घाटन के लिए अम्बेडकर को बुला चूके थे लेकिन अंबेडकर वहाँ नहीं जा पाए थे। इस बार भी वह नहीं गए। क्यों किया गया है ऐसा मैं आपको बताता हूँ। उसके दो कारण थे –
पहला कारण तो ये था कि गाँधी का विरोध- सावरकर भी गाँधी के विरोधी थे और अंबेडकर भी गाँधी के विरोधी थे। सावरकर को लगा कि अंबेडकर को अपने पाले में किया जा सकता है। दूसरा जब सावरकर का ये तथाकथित दलित उद्धार का पूरा खेल देखते हैं|
आप मैंने अपनी किताब सावरकर-काला पानी और उसके बाद में बहुत विस्तार से दिया है, आप उसको पढ़ेंगे तो शायद समझ में आया और आप चाहे तो खुद सावरकर समग्र पढ़ सकते हैं, आसानी से बाजार में भी उपलब्ध है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है।
तो सावरकर को यह चिंता बार बार होती है कि उस जमाने में जो ये लगातार मांग चल रही थी कि दलितों को अलग से काउंट किया जाए, जब हेड काउंट होता है, जब जनगणना होती है तो दलितों को अलग श्रेणी में जनगणना हो। तो उन्होंने कहा कि अगर ऐसी मांग पूरी हो जाएगी तब तो हमारे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी क्योंकि जो अपर कास्ट हिंदू है वह तो बहुत थोड़े से बचेंगे फिर उनके विशेषाधिकार कतई सुरक्षित नहीं रह पाएंगे।
जो स्टेक बनेगा उनका बहुत थोड़ा सा हो जाएगा क्योंकि पॉप्युलेशन में भी उनकी स्टेक पॉप्युलेशन में भी उनका जो शेर है वह बहुत थोड़ा सा है। इसलिए आप देखते हैं कि सावरकर रतनागिरी में रहते हुए लगातार दलितों को सहभोज वगैरह कर रहे हैं। हालांकि यह कोशिश बहुत सफल हुई नहीं थी।
जब वह हिंदू महासभा के अध्यक्ष बनते हैं 1937 में उसके बाद भी उनके भाषणों में, शुरुआती भाषणों में इस बात का जिक्र बार बार आता है।आप जानते हैं कि जो अपर कास्ट हिंदू हैं उसको अपना नेतृत्व चाहिए। जो सांप्रदायिक हिंदू हैं, मैं उसकी बात कर रहा हूँ लेकिन पैदल सेना कहाँ से आएंगी? ये पैदल सेना तो दलितों और पिछड़ों से ही आती है जो गोलियां चलाती है, जो लड़ती हैं, जो दंगों में हिस्सा लेती है।
सावरकर का जो पूरा दलितों के प्रति प्रेम था वह इस।पैदल सेना के निर्माण के लिए था और डॉक्टर अम्बेडकर इसको बहुत अच्छे से समझते थे और अंबेडकर ने एक जगह लिखा है कि अगर हिंदू राज़ एक वास्तविकता बनता है तो वह इस देश के लिए सबसे बड़ा सत्यानाश होगा। हमें हिंदू राज्य को एक वास्तविकता बनने से रोकने के लिए हर प्रयास हर प्रयास करना।
यह अगर आपके पास अंबेडकर का कंप्लीट वर्क है तो उसमें पाकिस्तान और पार्टिशन ऑफ इंडिया जो उनकी किताब है, पाकिस्तान और भारत का विभाजन जो उनका किताब है वह पढ़ सकते हैं, उनके समग्र में संकलित है और अगर आपका समग्र नहीं है तो सम्यक प्रकाशन ने धर्ममित्र सत्यप्रकाश के सम्पादन में इस किताब को छापा है। अनुवाद करके हिंदी में छपा हुआ है’ पाकिस्तान और भारत का विभाजन’ उसमें आप पढ़ सकते हैं।
सावरकर का अंबेडकर पर निर्लज्ज आक्षेप
यही नहीं सावरकर ये भी पहचानते थे कि कैसे सावरकर सॉरी अम्बेडकर ये भी पहचानते थे कि कैसे सावरकर और जिन्ना लगभग एक तरह के लोग हैं। तो सावरकर साहब की क्या कंडीशन थी? सावरकर साहब कितनी इज्जत करते थे अम्बेडकर की। इसके कुछ उदाहरण में आपको पढ़के सुनाऊंगा सीधे सावरकर समग्र से। पहला उदाहरण जो मैं पढ़ रहा हूँ वह सावरकर समग्र के खण्ड पांच से।आपके पास अगर सावरकर समग्र हैं, जो हिंदी में अब प्रकाशित हो चुका है। प्रभात प्रकाशन ने छापा है तो उसके पेज नंबर 481 पर जिसका शीर्षक है ‘डॉक्टर अंबेडकर को उत्तर विजयशील हिंदू राष्ट्।‘
कितना सम्मान करते थे ये इस बात से आप समझ सकते है की इसमें पहला उपशीर्षक है ‘अंबेडकर का निर्लज्ज आक्षेप।‘ बेशर्म कह रहे है वह डॉक्टर अंबेडकर को। इसके बाद जो दूसरा उदाहरण में दूंगा आपको वह इसी सावरकर समग्र के खंड सात से पेज नंबर-274। इसमें वे कुछ शीर्षक और उपशीर्षक है वह मैं पढ़ दूँ। ये दरअसल ये जो लेख है वह तब लिखे गए थे जब डॉक्टर डॉक्टर अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था।
पहले तो वह लिखते हैं कि ‘अंबेडकर, ईसाई या मुसलमान नहीं हुए या हम पर कोई उपकार नहीं है? दूसरा लिखते हैं कि हिंदुओं द्वारा धर्मांतरितों का सम्मान करना निर्लज्जता होगी।तीसरा जो उनका शीर्षक है उसको पढ़िए। उस शीर्षक में वह लिखते हैं, परंतु बौद्ध होते ही डॉक्टर अंबेडकर की भंगढ़ प्रतिज्ञा भंग हो गई।
आप सिर्फ भाषा देखिये।और इस भाषा से आपके समझ में आ जाएगा कि सावरकर जो है अंबेडकर के लिए किस तरह की बातें करते हैं, मैं इसके अंदर से कुछ पढ़ देता हूँ।
एक और लीक है बौद्ध धर्म स्वीकार करते ही तुम असहाय हो जाओगे। जो बौद्ध धर्म स्वीकार करने से थोड़ा पहले था उसमें वह लिखते हैं की अतः डॉक्टर अंबेडकर नामक व्यक्ति भिक्षु अम्बेडकर हो जाए तो भी किसी हिंदू को किसी तरह का सूतक नहीं लगने वाला है ना हर्ष। जहाँ स्वयं बुद्ध हार गए वहाँ अंबेडकर किसी झाड़ की पत्ती हैं।
आप सावरकर को पढ़ते हुए बार-बार देखते हैं कि बुद्ध को लेकर वह किस तरह की अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं, जबकि हिंदुत्व की अपनी परिभाषा में बौद्ध धर्म को हिंदुत्व के भीतर मान चूके हैं, उसके बावजूद ये स्थिति है। यह भाषा है। एक और लेख में वह कहते हैं, यह पेज नंबर 258 से 62 के बीच में है। समग्र के खंड सात से-
जो बड़बड़ अंबेडकर आज जन्म करते आए हैं वह जितनी झूठी है उतनी ही कुटिल है। इसलिए हर जनों में से वह जातियों का नाम लेते हैं जो मैं नहीं लूँगा। जो जातियां दलितों की जो जातियां होती है उनका नाम लेते है। इसीलिए हर जनों में से एक स्वेज़ आदि किसी भी जाति का हिंदू धर्म त्यागना के दुष्कर्म में।अंबेडकर के साथ नहीं है और जिन कुछ भ्रमित और झांसे में आए म्हारो का साथ उनको मिल रहा है। वह भी उपयुक्त सत्य पक्केपन से उनके सामने रखने पर ढहे बिना नहीं रहेगा। या हमारे महान बंधु अच्छी तरह से जान लें कि यदि वे हिंदू रहते हैं, तभी उनकी अस्पष्टता आसानी से नष्ट होगी और अपने हिंदू बंधुओं की सहनशक्ति से भी मुख होकर नहीं रहना पड़ेगा। यानी एक तरह से वह धमका रहे हैं की अगर वह बौद्ध हो जाएंगे तो हिंदू धर्म की जो सहनशक्ति है वह टूट जाएगी और उसके बाद वह उनके साथ पता नहीं क्या करे।
तो या भाषा थी सावरकर की अंबेडकर के प्रति। मैंने आपको बताया कि शुरुआत में उन्होंने कोशिश की अंबेडकर को पटाने की, अंबेडकर को भुलाने की, अंबेडकर को फंसाने की, अंबेडकर को साथ लेने की और उसमें उन्होंने कुछ मीठे-मीठे पत्र लिखे जिन मीठे मीठे पत्रों को कोट करके लोग सावरकर द्वारा अंबेडकर की प्रशंसा सिद्ध करते हैं।
जब अंबेडकर ने सावरकर की नहीं सुनी
लेकिन जब अंबेडकर ने उनकी नहीं सुनी, उसके बाद सावरकर का क्या व्यवहार था? सावरकर ने किस तरह की भाषा उपयोग की, उस भाषा को मैंने आपको बताया। उस भाषा का उदाहरण कुछ मैंने दिए, जो पढ़ना चाहे और एक बात बता दूं सावरकर समग्र जो है, वह सावरकर के अपने भक्तों ने छापी है।
किसी विरोधी ने नहीं छापी हैं, प्रभात प्रकाशन से छपी है, उनके अपने भक्तों ने छापी है और यहाँ भी जिसको मुश्किल हो सावरकर समग्र तक पहुँचने का, वह आराम से इन्टरनेट पर ढूंढेगा तो भी उसको सावरकर, समग्र अंग्रेजी या हिंदी में मिल जाएगा।
वहाँ से भी वह इनको पढ़ सकता है। पेज नंबर वगैरह मैंने आपको बताये है। लेखों के नाम बताए हैं, आप ढूंढेंगे बड़ी आसानी से मिल जाएगा।और यही मैं कहना चाहता हूँ कि डॉक्टर अंबेडकर भी अच्छी तरह से जानते थे की ये लोग चीज़ क्या है? जो मैंने किताब आपको बताई थी, पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन?
धर्ममित्र सत्य प्रकाश जी ने अनुवाद करके इसको छापा है, सम्यक प्रकाशन से आई है और और जो अंबेडकर समग्र है उसमें तो आपको मिल ही जाएगा अंग्रेजी में और हिंदी में भी। पेज नंबर 149-50 ये मैं आपको धर्ममित्र सत्य प्रकाश की किताब से बता रहा हूँ।
उस पर डॉक्टर अंबेडकर लिखते हैं, यह बात सुनने में भले ही विचित्र लगे, लेकिन एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के सवाल पर यानी जो एक राष्ट्र हिंदू और मुसलमान एक साथ मिलकर रहेंगे और दो राष्ट्र का सिद्धांत के हिंदुओं का अलग देशों मुसलमानों का अलग देश हों।
इस प्रश्न पर माननीय सावरकर और जिन्ना साहब के विचार परस्पर विरोधी होने के बजाय एक दूसरे से पूरी तरह मेल खाते हैं। सावरकर यह मानते हैं कि मुस्लिम एक अलग राष्ट्र हैं, ये भी स्वीकार कर लेते हैं कि उन्हें सांस्कृतिक स्वायत्तता का अधिकार है। वह उन्हें अलग राष्ट्रीय ध्वज रखने की अनुमति देते हैं, इसके बावजूद वे मुस्लिम राष्ट्र के लिए अलग क़ौमी वतन की अनुमति नहीं देते। यदि वे हिंदू राष्ट्र के लिए एक अलग कौमी वतन का दावा करते हैं तो मुस्लिम राष्ट्र के कौमी वतन के दावे का विरोध कैसे कर सकते हैं?
आप इसको पढ़ते हैं तो आपके समझ में आता है कि देश के विभाजन के लिए यही जो दो राष्ट्रों का सिद्धांत था, एक जिसमें जिन्ना कहते थे कि मुसलमानों को अपना राष्ट्र चाहिए। सावरकर कहते थे कि हिंदुओं को अपना राष्ट्र चाहिए, यही जो सिद्धांत था इसी ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच में इतनी नफरत पैदा की कि अंत में विभाजन हुआ।
अब एक आखिरी लेख में पढ़ता हूँ केसरी में छपा था ये 30 अक्टूबर 1956 को, और इस लेख में सावरकर अंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म अपनाए जाने को लेकर कहते हैं कि डॉक्टर अंबेडकर ने कुछ लाख अनुयायियों के साथ जो सम्प्रदाय बदल किया था या उससे वे चाहे धर्मांतरण कहे, बौद्ध धर्म के लिए उनके मन में कोई प्रगाढ़ भक्ति उत्पन्न हुई, इसलिए नहीं किया। उनके मन के अंधियारे में एक हिंदू राष्ट्रघाती महत्वाकांक्षा छिपी हुई है।
जैसे आज जो लोग सरकार का विरोध करते हैं या जो लोग हिंदुत्व की विचारधारा का विरोध करते हैं, जो लोग हिंदू धर्म की बात करते हैं लेकिन सावरकर के हिंदुत्व की विचारधारा की बात करते हैं, उन सब को गद्दार कहा जाता है।
वैसे ही सावरकर 1956 में अंबेडकर के लिए कह रहे थे कि उनके अंदर एक हिंदू राष्ट्रघाती महत्वाकांक्षा राष्ट्रघात करने वाली। गद्दारी करने वाली महत्वाकांक्षी। मैं जानता हूँ कि इसके बाद बहुत सारे लोग कहेंगे की गाँधी से भी तो अंबेडकर के बहुत सारे विरोध थे। बिलकुल थे विरोध लेकिन उस विरोध में कितना सम्मान था इसके लिए?
राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के समय गाँधी ने जो दो बातें कही थीं, उनको मैं कोट करूँगा। पहली बात उन्होंने कही थी की अस्पृश्यता के जीवित रहने की तुलना में मैं हिंदू धर्म का मर जाना पसंद करूँगा यानी छुआछूत अगर जिंदा है तो हिंदू धर्म मर भी जाए तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हिंदू धर्म का जीवन तभी चल सकता है या तभी हिंदू धर्म में मेरा कोई इंटरेस्ट हो सकता है जब उसके अंदर छुआछूत ना हो।
और एक पत्रकार से बात करते हुए कहा था कि मैं सबसे गरीब सफाई कर्मी के सामने घुटनों पर झुक जाऊंगा, उनके पैरों की धूल भी ले लूँगा क्योंकि सदियों से हम उन्हें कुचलने के लिए भागीदार रहे हैं। लेकिन मैं राजा के सामने कभी सार नहीं झुकाऊँगा। प्रिंस ऑफ वेल्स तो क्या चीज़ है? अगर आप ये पढ़ना चाहे तो मुरियल लिस्टर जो उनकी होस्ट थीं। उन्होंने एक किताब लिखी है एंटरटेनिंग गाँधी। उसके पेज नंबर 40 पर आपको मिल जायेगा।
ये किताब आसानी से इंटरनेट पे मिल जाती है। तो आज मैंने आपको बताने की कोशिश की बल्कि बताया, बकायदा सोर्स के सहित बताया।
- वीडियो का ट्रांसक्रिप्शन
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में