कैसे बना हैती दुनिया में दासों का पहला आज़ाद देश
16वीं से 19वीं सदी के बीच पसरी कृषि के कहानियों में वैश्विक बाजार में प्लांटेशनो (बगानों) के उत्पादों की बहुलता और प्रसार की कहानी है। जिसमें यूरोप के संप्रंभु वर्ग ने अत्यधिक मुनाफ़ा कमाया और यूरोप में समृद्धि की नींव पड़ी।
इस समृद्धि की क़ीमत पर दासप्रथा और दास-व्यापार ने क्रूरता की ऐतिहासिक ऊंचाइयाँ हासिल कीं। कालांतर में विश्वव्यापी जनसंघर्ष शुरू हुए और दुनिया में लोकतंत्र और सार्वभौमिक समानता के विचार पनपे जिनकी परिणति राजशाही और दासप्रथा की समाप्ति में हुई।
उपनिवेश एक-एक करके आजाद हुए। इसी संघर्ष में एक कड़ी हैती(सेंट डोमिनिक) के संघर्ष का इतिहास भी है। जिसने फ्रांस और ब्रिटेन के उपनिवेश से अपने आजादी का संघर्ष किया।
शक्कर का व्यापार दुनियाभर में सबसे ज्यादा मुनाफे का धंधा था जिसके मूल में दास-व्यापार पर आधारित त्रिकोणीय अर्थव्यवस्था थी। दास व्यापार में संलिप्त कंपनियाँ कैरिबियन में दासों को बेचकर शक्कर खरीदतीं, फिर यूरोप में जाकर शक्कर बेचती, और इसके बाद यूरोप में हथियार बंद यूरोपीय नाविक अफ्रीका पहुँचकर लोगों को जबरन दास बनाकर जहाज में ठूंसते थे।
फिर वही चक्र दोहराया जाता। यह सिलसिला 300 सालों तक निर्बाध चला और कैरिबियन के “सुगर साम्राज्य” फलते-फूलते रहे। जब कभी भी कोई विद्रोह हुआ तो उसे यूरोपीय फौजों की मदद से कुचल दिया गया।
आंदोलन दास प्रथा के गुलामी के खिलाफ
ब्रिटेन में अबोलिशनिस्ट आंदोलन के कार्यकर्ता दास-व्यापार को खत्म करने की मुहिम चला रहे थे लगभग उसी समय फ्रांस में समतामूलक समाज और सार्वभौमिक जीवन मूल्यों के लिए फ्रेच रिवोलूशन या फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) घटित हुई।
क्रांति की यह आग दो सालों के भीतर सेंट डोमिनिक(वर्तमान हैती) भी पहुँच गई। सेंट डोमिनिक फ्रांस की सबसे ज्यादा मुनाफे वाली सुगर कॉलोनी थी। उस समय सेंट डोमिनिक ने 25000 गोरे, 22000 मुफ्त अफ्रीकी(जिसमें दास-कमांडर शामिल थे) और 7000000 दास थे। वहां सब तरफ गन्ने के प्लांटेशन थे जिन्हें कमांडर दास चलाते थे।
14 अगस्त 1791 की रात दास कमांडरों ने एलिगेटर वुड्स नामक जगह पर गुप्त सभा की और हैती को आजाद कराने की प्रतिज्ञा ली। इस संघर्ष की अगुवाई टूसेंट ने की जो खुद को मुक्ति का द्वार कहता था।
दासों की नियति शक्कर के कारोबार से जुड़ी थी, सो उन्होंने हैती के प्लांटेशनों और कारखानों को एक-एक कर फूँक दिया। राजशाही के खात्मे के बाद बनी फ्रांस की अस्थायी सरकार ने इस बलवे से पार पाने का कोई उपाय न देखा और फ्रांस के भीतर चल रही उथल-पुथल के चलते 1793 में सेंट डोमिनिक को आज़ाद कर किया।
इस तरह, भूतपूर्व सुगर कॉलनी से दासों का पहला आज़ाद देश हैती बना।
क्यों बार-बार करना पड़ा, हैती को आजादी का संघर्ष
हैती ने दासों के एक ऐतिहासिक नजीर पेश की थी। हैती से बमुश्लिक 100 मील दूर ब्रिटिश सुगर कॉलोनी जमैका थी, जो छिटपुट विद्रोहों की जमीन बनी हुई थी। जमैका व अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों को यथावत चलाने के लिए हैती का दमन आवश्यक था।
जब फ्रांस पीछे हट गया तो हैती को सबक सिखाने का बीड़ा उठाया। ब्रिटेन सैनिकों ने हैती के लोगों को पकड़कर फिर से बनाकर प्लांटेशन पर लौटाना शूरू किया, लेकिन भूतपूर्व दासों ने ब्रिटिश सेना को कड़ी चुनौती दी। यह युद्ध पाँच साल तक चला और 1798 में ब्रिटेन इस लड़ाई से पीछे हट गया।
हैती एक बार फिर से आजाद हुआ। लेकिन यह आजादी भी अधिक दिन तक नही टिकी। 1799 में फ्रेंच रिवोलूशन का बलवा खत्म होने के बाद नेपोलियन सता में आया तो उसने दासों को मुक्त करने वाले क़ानूनों रद्द करने के साथ ही हैती पर हमला किया। फ्रांसीसी सैनिकों ने विद्रोही नेता टेसेंट को कैद कर लिया। जेल के भीतर टेसेंट की 1803 में मौत हो गई लेकिन हैती के लोगों ने हार नहीं मानी।
वे नेपोलियन के सेना से लड़ते रहे। हैती के दास अफ्रीका में आजाद इन्सान की तरह जन्में और पले-बढ़े थे। उनमें बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे जो अपने कबीले के जांबाज सैनिक थे और लंबी दासता के बाद भी उनकी आत्मा पूरी तरह से टूटी नहीं थी। पांच वर्ष तक चले युद्ध में 50000 फ्रांसीसी सैनिक मारे गए और फ्रांस को भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ।
जब फ्रांस को युद्ध जारी रखने में कोई वजह नहीं बची तो वह पीछे हट गया। 1804 में हैती आखिर हमेशा के लिए आजाद हो गया।
संदर्भ स्त्रोत
सुषमा नैथानी, अन्न कहां से आता है,राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली, 2022- पेज नं 41-47
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में