नेहरू को प्रेरणास्रोत मानते थे मार्टिन लूथर किंग
मार्टिन लूथर किंग, जूनियर(1929-1968) अमेरिका में नागरिक आन्दोलन (1955-1968 में अपनी हत्या तक) के सबसे बड़े प्रवक्ता थे। वह अहिंसा और सिविल नाफ़रमानी की गांधीवादी विधियों को अपने आन्दोलन का आधार बनाने के लिए विख्यात हैं। वह नेहरू के भी प्रशंसक थे, और उन्हें अश्वेत अमेरिकियों को अलग-थलग रखने की नीतियों के विरुद्ध संघर्ष के प्रेरणास्रोतों में गिनते थे। दोनों के बीच में संक्षिप्त पत्राचार भी हुए और 1959 में दिल्ली में एक मुलाकात भी, जिसमें दोनों नेताओं ने बहुत-सी राजनीतिक और सामाजिक चिन्ताएं एक-दूसरे से साझा कीं।[i]
पढ़िए नेहरू को दी गई उनकी श्रद्धांजलि
तीन असाधारण युगों से आते थे नेहरू
जवाहरलाल नेहरू एक साथ तीन असाधारण युगों मे आते थे। उन्होंने अपने देश के उपनिवेशवाद-विरोधी लम्बे संघर्ष में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई, दूसरे देशों में संघर्ष चेतना को भी प्रेरित किया। उन्होंने विजय हासिल की और फिर एक दूसरे युग के संघर्ष में गांधी उनके साथ नहीं थे, लेकिन महान स्वतंत्र गणतंत्र भारत की जनता उनके साथ थी।
इस पूरे कालखंड में नेहरू और भारत के योगदान का पूरा मूल्यांकन कर पाना बहुत कठिन है। यह वह दौर था जब मानव जाति एक भयंकर अन्त के सतत ख़तरे से गुज़र रही थी।
इस दौर में, एक भी क्षण ऐसा नहीं था जब परमाणु युद्ध की आशंका न बन रही हो। ऐसे वक़्त में नेहरू एक कद्दावर वैश्विक शक्ति के रूप में, पूरब और पश्चिम की महान ताक़तों की आपसी शत्रुताओं के बीच, भारत की शान्ति सम्मति को स्थापित कर रहे थे।
दुनिया को ऐसे मध्यस्थ और ईमानदार बिचौलिए की ज़रूरत थी, अन्यथा उसने अचानक जो विनाश की ताक़त हासिल कर ली थी, उसमें कोई भी पक्ष जब दुनिया को मानव जाति के अन्तिम युद्ध में डुबो सकता था। नेहरू में वह प्रतिष्ठा, बुद्धिमत्ता और साहस था कि वह इस भूमिका को निभा सके।
आज जो तनाव में कमी दिखती है, वह नेहरू की विरासत भी है, उनकी यादगार भी।
परमाणु परीक्षण निरोधक सन्धि के प्रस्तावक थे नेहरू
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1963 में हुई परमाणु परीक्षण निरोधक सन्धि का प्रस्ताव सबसे पहले नेहरू ने ही रखा था। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि उपनिवेशवाद जिस तेजी से पूरी दुनिया से अपने पैर समेट रहा है, उसकी मूल जड़ भारत की विशाल जीत में छिपी थी।
यह भी याद रखना चाहिए कि नेहरू इस एशियन अफ्रीकन ब्लाक को करोड़ों लोगों की एक संयुक्त आवाज़ बनाने के मार्गदर्शक बने जो आधुनिक विश्व बनने की ओर केवल अनुमान से बढ़ रहे थे।
वह गुटनिरक्षपेक्षता या तटस्थता के नीति-निर्माता थे जो कि नये उभरते राष्ट्रों को अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति देने के लिए बनाई गई थी, जिससे वे वैश्विक मुद्दों पर अपनी रचनात्मक भूमिका निभा सकें।
नेहरू का तीसरा युग उनकी मृत्यु के बाद सामने आ रहा है। भले वह भौतिक रूप से उपस्थित नहीं हैं, लेकिन उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति एक जीवनी शक्ति के रूप में मौजूदगी बनाए हुए है।
वैश्विक शांति के समय नेहरू के प्रयास याद किए जाने चाहिए
आज भी महान शक्तियों के आपस में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध नहीं हैं, फिर भी गुटनिरपेक्ष संसार की मदद से इन शक्तियों ने परस्पर समझदारी-भरा नियंत्रण बनाना सीखा है।
इसमें एक स्थायी शान्ति का आधार छुपा है। इसके आगे भी, शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व का भरोसा रखने और उसके लिए काम भी कर सकने का जो उदाहरण नेहरू के रूप में हमारे पास है, उसने मानवता को एक उम्मीद-भरी आशा दी है।
इस काल में मेरे लोगों, यूनाइटेड स्टेट्स के नीग्रो[ii] लोगों ने, सभी पुरानी नज़ीरों का अतिक्रमण करके आज़ादी की ओर कदम बढ़ाया है।
हमारी सफलता का श्रेय उन अहिंसात्मक सीधी कार्यवाहियों और बुराई के साथ असहयोग की युक्तियों को है जिन्हें गांधी की प्रेरणा से नेहरू ने असरदार ढंग से लागू किया।
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यह साम्राज्यवाद की कुटिलता थी कि उसने बड़ी आसानी से दुनिया को इस भ्रम में उलझाये रखा कि वो आदिम सभ्यताओं को सभ्य बना रही है जबकि पूरी तरह से उनका शोषण हो रहे थे।
सत्याग्रह ने इस मिथक को तोड़ दिया और उसने खुलासा कर दिया कि जो लोग अत्याचार के शिकार थे, वास्तव में पूरी तरह से सभ्य तो वही थे।
उन्होंने हिंसा को ख़ारिज़ किया और प्रतिरोध करते रहे, जबकि अत्याचारी को हिंसा के प्रयोग के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही पता नहीं था। हमारे लोगों ने भी यूनाइटेड स्टेटस में उत्पीड़कों के खिलाफ इसी सत्याग्रह की नीति अपनाई जिससे ये साफ़ हो गया कि कौन सही था और कौन गलत।
सत्य की इसी अपराजेय नींव पर बहुसंख्यक जनता एक न्यायसंगत समधान के लिए संगठित हो सकी। एक सच्ची सभ्यता के लिए मानव जाति द्वारा किए जा रहे इन सारे संघर्षों में, संवादों में हर जगह नेहरू की ऊंची शख़्सियत मौजूद है, भले ही भौतिक रूप में वे अब दुनिया में न हों। उनकी कमी पूरी दुनिया को खलती है, कितने सारे लोग सोचते हैं कि काश नेहरू हमारे साथ होते..
इसलिए, आज इस बैचेन दुनिया में नेहरू अभी भी हमारे साथ है।
संदर्भ स्त्रोत
[i] द लीगेसी ऑफ नेहरू: ए मेमोरियल ट्रिब्यूट, सम्पादक, कुंवर नटवर सिंह, न्यूयार्क: जान डे, 1965
[ii] आजकल नीग्रो शब्द का उपयोग करना उचित नहीं माना जाता, लेकिन डां किंग के समय यही शब्द चलता था। मूल लेख में डां किग ने इसी शब्द का इस्तेमाल किया है।
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में