दैट इज द फर्स्ट डिफीट टु मी बाय भगत सिंह
आज जयदेव कपूर का जन्म दिवस है, उनका ज न्म आज के ही दिन 24 अक्टूबए 1908 को आर्यसमाजी परिवार में शालीग्राम कपूर के घर हुआ था।
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला की बैठक में जयदेव कपूर संयुक्त प्रांत के (आज के उत्तर प्र्देश) प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे। उनको नये दल के केन्दीय समिति में चुना गया और एक्शन विभाग में रखा गया।
सरदार ने बाजी मार ली
दिल्ली स्थित सेंट्रल असेंबली में जब बम फेंकने की योजना बनी तो उसको अंजाम देने के लिए पहले जयदेव कपूर का ही नाम तय हुआ था। बम कांड की पूरी योजना जयदेव कपूर ने बनाई थी। सेंट्रल असेंबली में घुसने का पास और नक्शे का इंतजाम आदि बारीक काम उन्होंने ही किया था।
लेकिन संगठन के इस फैसले को लेकर जब सुखदेव और भगत सिंह ने असहमति जताई और भगत सिंह ने ख़ुद बम फेकने का जिम्मा लिया तो दल को अपना निर्णय बदला पड़ा।
जयदेव कपूर ने बाद में इस पूरे प्रसंग का सार देते हुए कहा- दैट इज द फर्स्ट डिफीट टु मी बाय भगत सिंह….सरदार ने बाजी मार ली।
असेंबली में बम फेंकने जाने से पहले भगत सिंह ने अपने जूते और घड़ी जयदेव कपूर को दिए।
भगत सिंह की मशहूर फेल्ट हैट वाली फोटो खिचवाने का काम भी जयदेव ने ही किया। 4 अप्रैल 1929 को दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास रामनाथ फोटोग्राफर्स के यहां ली गई थी। फोटो लेने वाले को जयदेव ने हिदायत दी थी, हमारा दोस्त बहुत दूर जा रहा है इसलिए हम इसकी अच्छी तस्वीर चाहते हैं।
असेबली कांड के बाद जयदेव ने ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की फोटो रामनाथ फोटोग्राफर्स से लेकर आये थे और बाद में उन्होंने उनको अलग-अलग अख़बारों के दफ्तर में भेजने की व्यवस्था की थी।
आप मारेगे कैसे? पिस्तौल तो ठीक करिए।
जयदेव कपूर को सहारनपुर बम फैक्ट्री से 13 मई 1929 को गिरफ्तार किया गया। उसके साथ शिव और गया प्रसाद भी गिरफ्तार हो गये।
गिरफ्तारी के वक्त बम फैक्ट्री से एक ब्रीफकेस में चार जिंदा बम बरामद हुए थे। इसके अलावा कुछ किताबें मैनुअल आंफ हैंड ग्रेनेट थ्रोइंग, मैनुअल आंफ स्माल आर्म्स ट्रेनिग आदि।
एक मजेदार घटना यह घटी थी। जिस पुलिस सपरिटेंडेट के नेतृत्व में पुलिस पार्टी आयी थी, वह बम देखकर घबरा गई और कमरे से बाहर भाग गई। कुछ देर बाद जब सारे जिंदा बम सिपाहियों ने कब्जे में ले लिए तब वह अंदर आया, लेकिन उसकी हालात खराब थी।
जयदेव कपूर को देखकर उनकी तरफ कांपते हाथों से अपनी रिवाल्वर तान दी और कहा- बम नीचे रख दो नहीं तो गोली मार दूंगा। उसने घबराहट में यह नहीं देखा कि रिवाल्वर का बैरल नीचे लटक रहा था। जयदेव कपूर को यह देखकर इतने तनावपूर्ण माहौल में भी हंसी आ गयी और उन्होंने हंसते हुए कहा- आप मारेगें कैसे? पहले अपनी पिस्तौल तो ठीक करिए।
मैंने ही बरसों सजाया मयकदा, मेरी ही किस्मत में पैमाना नहीं…
जिस वक्त जयदेव कपूर को कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए लाहौर लाया गया। अदालत में उनकी मुलाकात भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त से हुई जो उस समय राजनैतिक कैदियों के अधिकारों के लिए भूख हड़ताल पर थे।
मुकदमे के दौरान जेल के अंदर जितनी भी लड़ाइयां लड़ी गई, उन सब में जयदेव कपूर ने भगत सिंह और साथियों का साथ दिया। चाहे भूख-हड़ताल हो, चाहे पुलिस से मुठभेड़, चाहे राजनैतिक कैदियों से सहानुभूति के प्रदर्शन, जयदेव का हाथ सबसे पहले उठता था। यदि कोई निर्णय कर लिया गया, तो फिर किसी प्रकार के भी समझौते की बातचीत का वह विरोध करते थे।
जयदेव ने अदालत में पेशी के दौरान हथकड़ी पहनाये जाने का विरोध किया था, जिसके लिए उनको पुलिस से ख़ूब मार पड़ी। मजिस्ट्रेट ये सब देख रहा था।
सूजे हुए माथे और हाथ, फटे हुए कपड़े और ख़ूने से लथपथ जयदेव ने तभी एक जोरदार भाषण दिया।जो मजिस्ट्रेट अपनी अदालत में ऐसे अत्याचार करने की इजाजत दे सकता है, उसे इस्तीफा दे देना चाहिए।
जयदेव कपूर को आजीवन कारावास की सजा दी गई। उनको अपनी आजीवन कारावास की सजा भगत सिंह की फांसी की सज़ा के सामने अपनी हार लगी।
उन्होंने कहा- सरदार को फांसी का पुरस्कार और मुझे सिर्फ कालापानी की सजा…द सेंकड डिफीट..सरदार ने मुझे दो बार शिकस्त की; मैंने ही बरसों सजाया मयकदा, मेरी ही किस्मत में पैमाना नहीं।
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जयदेव कपूर और भगत सिंह की आखरी मुलाकात
जिस वक्त जयदेव, भगत सिंह और बाकी साथी लाहौर जेल में थे, उस वक्त जेलर थे मोहम्मद अकबर। अनुशासन के मामले में बेहद सख्त। उसने जयदेव से पूछा- तुमको उदास कभी नहीं देखा। आज परेशान नज़र आ रहे हो।
जयदेव ने कहा- हमारे जीवन मरण के तीन साथी सामने की काल कोठरी में बंद है उनसे अब कभी भेंट नहीं हो सकेगी। आप हमें एक बार उनसे मिलने की इजाजत दे दीजिए।
पता नहीं कैसे जेलर का दिल पसीज गया और उसने आज्ञा दे दी। हम धीरे-धीरे आगे बढ़े तो देखा कि आधी रात के वक्त सरदार सींखचे के भीतर लेटा बाहर से आती रोशनी में कोई किताब पढ़ रहा था।
हमारी बेड़ियों की आवाह से वह चौकन्ना होकर उठ खड़ा हुआ। बोला- इस वक्त यहां कैसे? मैने कहा- सरदार यह तो हमें भी नहीं पता। लेकिन अब कहीं दूर किसी और जगह जाना है। हमारा यह आखरी मिलन है। सुनकर उसने अपनी दो लंबी बाहें बाहर निकालीं और एक-एक कर सभी साथियों को अपने सीने से सटा लिया।
जयदेव ने भगत सिंह से पूछा- सरदार, इस वक्त तुम्हें कैसा महसूस कर रहे हो, जबकि मृत्यु तुम्हारे कुछ कदम दूर खड़ी है? सुनकर वह अपनी स्वाभाविक हंसी के साथ बोला- आज जेल के काल कोठरी मैं बैठकर जब सड़को, खेतों-खलिहानों से इंकलाब जिंदाबाद की आवाजें आते सुनता हूं तो लगता है कि मुझे अपनी जिंदगी की कीमत मिल गयी। साढ़े तैइस साल की इस छोटी से जिंदगी की कीमत आख़िर हो भी क्या सकती है।
मैं तो कुछ दिनों में फासी पर चढ़ जाऊंगा, लेकिन तुम लोगों के सामने लंबी जिंदगी का सफ़र है। मुझे विश्वास है कि जेक की चहारदीवारी के भीतर कठोर यातनाएं सहते और तिलतिल मौत की ओर सरकते हुए तुम कहीं थकोगे नहीं, पस्त नहीं होगे और हार मानकर रास्ते में बैठ नहीं जाओंगे।
जयदेव कपूर 15 अगस्त 1947 से पहले गोरें अंग्रेजों की पुलिस और नौकरशाही से लड़े और उसके बाद उसी मानसिकता के पोषक भारतीय तंत्र से। वह थके नहीं और अपने हौसले को कभी पस्त नहीं होने दिया। यह लड़ाई उन्होंने 19 सिंतबर 1994 तक अपनी अंतिम सांस तक जारी रखी।
संदर्भ
प्रबल सरन अग्रवाल, हर्षवर्धन त्रिपाठी, अंकुर गोस्वामी, भगत सिंह के साथी, वाम प्रकाशन, नई दिल्ली 2022
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में