1857 के गदर के किसान विद्रोही, बाबा शाहमल तोमर
1836 में बेगम समरू की मृत्यु के बाद, सरधना और उसके आसपास के गांवों में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाने वालों में मुख्य रूप से जाट समुदाय के किसान शामिल थे। यह क्रांति 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से ठीक 21 वर्ष पहले शुरू हुई थी और अगले 21 वर्षों तक इसकी चिंगारियां सुलगती रहीं।
संयुक्त प्रांत के बागपत क्षेत्र में इस क्रांति ने सबसे उग्र रूप धारण किया। 1836 में यह क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन आ गया। अंग्रेज अधिकारी प्लाउड ने भूमि बंदोबस्त के दौरान किसानों पर हो रहे अत्याचारों को कुछ हद तक कम किया, लेकिन मालगुजारी (भूमि कर) में बढ़ोतरी कर दी।
चूंकि पैदावार अच्छी थी और जाट किसान मेहनती थे, उन्होंने बढ़ी हुई मालगुजारी के बावजूद खेती जारी रखी। हालांकि, भूमि के बंदोबस्त और अधिक मालगुजारी के कारण किसानों में गहरा असंतोष पनपने लगा। यही असंतोष 1857 की क्रांति के दौरान ‘आग में घी’ का काम कर गया।
कौन थे बाबा शाहमल तोमर
शाहमल बिजरौल गांव के एक साधारण लेकिन आज़ादी के दीवाने क्रांतिकारी किसान थे। वह मेरठ और दिल्ली सहित आसपास के इलाकों में बेहद लोकप्रिय थे। बिजरौल, शाहमल का गांव, एक बड़ा और प्रभावशाली गांव था। 1857 की क्रांति के समय इस गांव में दो “पट्टियाँ” थीं। उस समय शाहमल एक पट्टी का नेतृत्व करते थे। उनकी पट्टी में उनके साथी चौधरी शीशराम और कुछ अन्य लोग शामिल थे, लेकिन इन लोगों ने शाहमल की क्रांतिकारी कार्रवाइयों में सहयोग नहीं दिया। दूसरी पट्टी में चार “थोक” (समूह) थे, जिन्होंने भी उनका साथ नहीं दिया। इसीलिए उनकी जमीन अंग्रेजों द्वारा जब्त होने से बच गई।
शाहमल की क्रांति प्रारंभ में स्थानीय स्तर पर सीमित थी, लेकिन समय के साथ इसका विस्तार हुआ। आसपास के गांवों के लंबरदार, विशेष रूप से बड़ीत के लंबरदार शीन सिंह और बुध सिंह, तथा जौहरी, जफरवाद और जोट के लंबरदार बदन और गुलाम ने भी विद्रोही सेना में अपनी जगह बना ली। शाहमल के मुख्य सेनापति (सिपहसालार) बगुता और सज्जा थे। जाटों के दो बड़े गांव, वाली और बड़ौत, अपनी जनसंख्या और रसद के कारण शाहमल के केंद्र बन गए।
10 मई को मेरठ से शुरू हुए विद्रोह की लपटें पूरे इलाके में फैल गईं। शाहमल ने जहानपुर के गूजरों को साथ लेकर बड़ीत तहसील पर चढ़ाई कर दी। उन्होंने तहसील के खजाने को लूटकर उसकी संपत्ति को नष्ट कर दिया और बंजारा सौदागरों की लूट के माध्यम से खेती की उपज में कमी को पूरा किया। इससे आसपास के गांवों में उनकी धाक जम गई। उनके नेतृत्व और प्रभुत्व को देखते हुए दिल्ली दरबार ने उन्हें सूबेदारी का पद प्रदान किया।
1857 के विद्रोह में बहादुर शाह जफर का साथ दिया
12 और 13 मई 1857 को बाबा शाहमल ने अपने साथियों के साथ बंजारा व्यापारियों पर पहला आक्रमण किया और उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उन्होंने बड़ीत तहसील और पुलिस चौकी पर हमला कर तोड़फोड़ और लूटपाट को अंजाम दिया। शाहमल ने दिल्ली के क्रांतिकारियों को बड़ी मदद दी। क्रांति के प्रति उनके अगाध प्रेम और समर्पण ने जल्दी ही उन्हें क्रांतिकारियों का “सूबेदार” बना दिया।
शाहमल ने विलोचपुरा के बलूची नवाब के पुत्र अल्लादिया को अपना दूत बनाकर दिल्ली भेजा, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए मदद और सैनिक जुटाए जा सकें। बागपत के थानेदार वजीर खां ने भी इसी उद्देश्य से सम्राट बहादुर शाह जफर को अर्जी भेजी। शाहमल का संपर्क बागपत के नूर खां के पुत्र मेहताब खां से भी था। इन सभी ने बहादुर शाह जफर से शाहमल को मिलवाते हुए कहा कि वह क्रांतिकारियों के लिए बहुत सहायक साबित हो सकते हैं।
शाहमल ने न केवल अंग्रेजों के संचार साधनों को नष्ट किया, बल्कि अपने इलाके को दिल्ली के क्रांतिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण आपूर्ति क्षेत्र में बदल दिया। अपनी बढ़ती फौज की ताकत से उन्होंने बागपत के पास यमुना पर बने पुल को नष्ट कर दिया। उनकी इन सफलताओं के कारण उन्हें 84 गांवों का आधिपत्य प्राप्त हुआ, जिसे आज तक “देश खाप की चौरासी” कहा जाता है।
जब शाहमल एक स्वतंत्र राज्य के राजा बन गए
शाहमल ने इस क्षेत्र को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में संगठित कर लिया और यमुना के बाएँ किनारे का “राजा” बन गए। उनके नेतृत्व में दिल्ली के उभरते क्रांतिकारियों को मदद मिलती रही, जबकि अंग्रेजों की फौजों के लिए रसद भेजना पूरी तरह बंद हो गया। इस प्रकार, एक साधारण किसान शाहमल एक बड़े क्षेत्र के अधिपति बन गए।
कुछ अंग्रेज अधिकारी, जिनमें हैवेट, फारेस्ट, ग्राम्हीर, वॉटसन, कोरेंट, गफ और थॉमस प्रमुख थे, को यूरोपियन फ्रासू ने शरण दी। फ्रासू, जो बेगम समरू का दरबारी कवि भी था, ने इन अंग्रेजों को अपने गांव हरचंदपुर में छुपाया। इसका पता चलते ही शाहमल ने निरपत सिंह और लाजराम जाट के साथ मिलकर फ्रासू को पकड़ लिया। उन्होंने उसके हाथ-पैर बांधकर उसकी जमकर पिटाई की और सजा के तौर पर उसका घर लूट लिया।
बनाली के एक महाजन ने काफी धन देकर फ्रासू की जान बचाई। मेरठ से दिल्ली जाते हुए डनलप, विलियम्स और ट्रम्बल ने भी फ्रासू की रक्षा की। बाद में, फ्रासू को उसके पड़ोसी गांव सुन्हैड़ा के लोगों ने बताया कि इस्माइल, रामभाई और जासूदी के नेतृत्व में कई गांव अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
शाहमल के नेतृत्व में हिंदू-मुसलमानों ने मिलकर अंग्रेजों का सामना किया
शाहमल के प्रयत्नों से हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर अंग्रेजों का सामना किया। उनके नेतृत्व में हरचंदपुर, ननवा काजिम, नानूहन, सरखलान, बिजरौल, जीहड़ी, बिजवाड़ा, पूठ, धनौरा, बुट्टेरा, पोईस, गुराना, नंगला गुलाब, बड़ौली, बलि बनाली (निम्वाली), वागू, सन्तोखपुर, हिलवाड़ी, बड़ीत, खेकड़ा, औसख, नादिर असलत और असलत खर्मास गांवों के लोग संगठित हुए और क्रांति का बिगुल बजाया।
कुछ बेदखल जमींदारों ने जब शाहमल का साथ छोड़कर अंग्रेज अफसर डनलप की फौज का समर्थन किया, तो शाहमल ने 300 सिपाहियों के साथ बसौड़ गांव पर कब्जा कर लिया। जब अंग्रेजी फौज ने गांव का घेरा डाला, शाहमल पहले ही वहां से निकल चुका था। इसके बाद, अंग्रेज अधिकारी फीज ने वहां मौजूद सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया और 8000 मन गेहूं जब्त कर लिया।
शाहमल के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों को इस जब्त किए गए अनाज को खरीदने के लिए कोई किसान या व्यापारी नहीं मिला। गांव के लोगों को सेना ने बाहर निकाल दिया, लेकिन दिल्ली से आए दो गाजी मस्जिद में मोर्चा लेकर लड़ते रहे, जिससे सेना को विफलता हाथ लगी।
शाहमल ने यमुना नहर पर सिंचाई विभाग के बंगले को अपना मुख्यालय बना लिया और एक गुप्तचर सेना गठित की। अपनी रणनीतिक सूझ-बूझ से उन्होंने अंग्रेजी सैनिकों को कई बार परेशान किया। एक घटना में, उन्होंने हमले की पूर्व सूचना मिलने पर 129 अंग्रेजी सैनिकों को भारी नुकसान पहुंचाया।
दिल्ली दरबार और शाहमल संधि अंग्रेजों के लिए बड़ी चुनौती थी
दिल्ली दरबार और शाहमल के बीच एक संधि हुई थी, जो अंग्रेजों के लिए बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज समझ गए थे कि यदि दिल्ली की मुगल सत्ता को कमजोर करना है, तो शाहमल की ताकत को खत्म करना जरूरी होगा। इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने शाहमल को जिंदा या मृत पकड़ने के लिए 10,000 रुपये का इनाम घोषित किया। हालांकि, डनलप के नेतृत्व वाली अंग्रेजी फौज को शाहमल की सेना के सामने हार का सामना करना पड़ा और डनलप को भागना पड़ा।
जुलाई 1857 में, शाहमल को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सेना ने संकल्प लिया। हालांकि, लगभग 7,000 सशस्त्र किसानों और जमींदारों ने डटकर मुकाबला किया। इस संघर्ष के दौरान, शाहमल के भतीजे भगत के हमले से डनलप बाल-बाल बचा और उसे बड़ौत तक खदेड़ा गया।
गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में महारत रखने वाले शाहमल और उनके अनुयायियों का बड़ौत के दक्षिण में एक बाग में अंग्रेजी खाकी रिसाला से आमने-सामने घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध ने शाहमल की सैन्य कुशलता और नेतृत्व क्षमता को और अधिक उजागर किया। अंग्रेज अधिकारी डनलप, शाहमल के भतीजे भगता के हमले से बाल-बाल बचकर भाग गया, लेकिन शाहमल, जो अपने घोड़े पर एक अंगरक्षक के साथ लड़ रहा था, फिरंगियों के बीच घिर गया।
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शाहमल की शहादत
शाहमल ने अपनी तलवार के माध्यम से अद्भुत युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया, जिससे अंग्रेज दंग रह गए। तलवार गिर जाने के बाद, उसने भाले से दुश्मनों पर हमला जारी रखा। इसी दौरान, उसकी पगड़ी घोड़े के पैरों में फँस गई। इस स्थिति का फायदा उठाकर एक अंग्रेज सवार ने उसे घोड़े से गिरा दिया। अंग्रेज अफसर पारकर, जो शाहमल को पहचानता था, ने उसकी निर्मम हत्या कर दी। शाहमल के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए और उसका सिर काटकर भाले पर टांग दिया गया।
अंग्रेजों के लिए यह एक बड़ी जीत के रूप में प्रचारित किया गया। डनलप ने अपने कागजात में लिखा कि खाकी रिसाले के एक भाले पर अंग्रेजी झंडा और दूसरे पर शाहमल का सिर टांगा गया, और इसे पूरे इलाके में परेड करवा कर प्रदर्शन किया गया।इसके बावजूद, चौरासी गांवों की किसान सेना ने हार नहीं मानी। शाहमल के सिर को वापस पाने के लिए उनके सहयोगी सूरजमल और भगता लगातार अंग्रेजों पर हमले करते रहे। इन प्रयासों में राजपूतों और गुर्जरों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
21 जुलाई 1857 को अंग्रेज अधिकारियों को तार के माध्यम से सूचना दी गई कि शाहमल अपने 6,000 साथियों के साथ मेरठ से आई अंग्रेजी फौजों के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया। शाहमल का सिर काटकर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया गया।
हालांकि, शाहमल की शहादत ने क्रांति की ज्वाला को और भड़का दिया। 23 अगस्त 1857 को शाहमल के पौत्र लिज्जामल जाट ने बड़ीत क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ पुनः संगठित होकर संघर्ष शुरू कर दिया।
संदर्भ
तेजपाल सिंह धामा, दस गुमनाम क्रांतिकारी, आर्यखंड टेलीविजन प्राइवेट लिमिटेड
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में