पंडित नेहरू से खास रिश्ता था फिराक गोरखपुरी का
फक्कड़, बेबाक और बेखौफ अंदाज वाले महान शायर रघुपति सहाय अगर रघुपति सहाय नाम से आप वाकिफ नहीं हैं तो ‘फिराक गोरखपुरी‘ नाम तो जरूर सुना होगा। रघुपति सहाय को ही दुनिया सदी के महान शायर फिराक गोरखपुरी के नाम से जानती है।
अपने साहित्यक जीवन का शुरुआती दिनों में ही 6 दिसंबर 1926 को ब्रिटिश सरकार ने उनको राजनीतिक बंदी बनाकर कैद कर लिया था तथा डेढ़ दशक तक जेल की सजा काटी।
रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर में हुआ। 1914 को उनका विवाह प्रसिद्ध जमींदार विन्देश्वरी प्रसाद की बेटी किशोरी देवी से हुआ। अजय मान सिंह अपनी किताब फिराक गोरखपुरी: द पोएट ऑफ पेन एंड एक्स्टसी में बताते है कि फिराक गोरखपुरी को शादी में धोखा मिला था। फिराक पिता बहू के रूप में एक शिक्षित महिला चाहते थे क्योंकि फिराक को सुंदरता, साहित्य और दर्शन से अंतर्निहित प्रेम था। शादी के कुछ दिनों बाद पता चला कि फिराक के परिवार को दिखाई गई लड़की उनकी पत्नी नहीं है। धोखे से किसी और लड़की से शादी करवा दी गई है।
शादी के बाद फिराक के घर पहुंचने पर ही किशोरी को खुद विश्वासघात का पता चला। तब तक, अपने पति और उसके परिवार के लिए खेद महसूस करने के अलावा कुछ भी करने में बहुत देर हो चुकी थी। फिराक इस धोखे से बहुत निराश हुए। उनका वैवाहिक जीवन प्रेमहीन रहा।
कला से स्नातक में पूरे प्रदेश में चौथा स्थान पाने के बाद आई.सी.एस. में चुने गये। परंतु वह थे अंग्रेजों के घोर विरोधी। 1920 में नौकरी छोड़ दी और स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े। अपने साहित्यक जीवन का शुरुआती दिनों में ही आज ही के दिन 6 दिसंबर 1926 को ब्रिटिश सरकार ने उनको राजनीतिक बंदी बनाकर कैद कर लिया था। स्वतंत्रता पाने की चाह में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, जिसकी वजह से उन्हें डेढ़ साल की जेल भी काटने पड़ी और 500 रूपए का जुर्माना भी भरना पड़ा उसके बावजूद उन्हें कोई शिकायत नहीं थी लेकिन जब गांधी जी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया तो फिराक के दिल को काफी ठेस पहुँची।
जब पंडित नेहरू पर भड़क गए फिराक गोरखपुरी
जेल से छूटने के बाद पंडित नेहरु ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस के दफ्तर में अवर सचिव की जगह दिला दी। बाद में नेहरू जी जब कमला नेहरू के इलाज के लिए यूरोप के दौर पर थे उन्होंने अवर स़चिव का पद छोड़ दिया और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक रहे।
फक्कड़, बेबाक और बेखौफ अंदाज वाले फिराक साहब एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू पर भड़क गए थे।
दरअसल, यह साल था दिसंबर 1947 का, जब नेहरू जी आनंद भवन पहुंचे हुए थे। इस दौरान नेहरू जी से मिलने फिराक गोरखपुरी आनंद भवन पहुंचे थे। गेट पर बैठे रिसेप्शनिस्ट ने आर. सहाय के नाम की पर्ची अंदर भेज दी और फिराक साहब बाहर इंतजार करने लगे, करीब 15 मिनट होने के बाद भी अंदर से कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद फिराक साहब का पारा गरम हुआ और भड़के हुए वो बाहर ही शोर मचाने लगते हैं।
आवाज सुनकर नेहरू जी बाहर आए लेकिन फिराक साहब अभी भी शांत नहीं थे। नेहरू जी ने बताया कि मैं करीब 30 वर्षों से आपको ‘रघुपति सहाय’ के नाम से पहचानता हूं। इसके बाद नेहरू जी उन्हें खुद अंदर ले जाते हैं।
इंदिरा गांधी फिराक गोरखपुरी को राज्यसभा का सदस्य बनाना चाहती थीं। एक बार लालकिले पर होने वाले मुशायरे में भाग लेने के लिए फिराक दिल्ली गए हुए थे तो इंदिरा जी ने अपने आवास पर बुलाकर उनके सामने यह प्रस्ताव रखा।
फिराक ने यह कहकर अनुरोध ठुकरा दिया कि मोती लाल नेहरू के जमाने से उनके आनंद भवन से गहरे रिश्ते रहे हैं। आपका जो स्नेह मिला है, वह मेरे लिए एक नहीं सौ बार राज्यसभा सदस्य बनने के बराबर है।
जब गांधीजी से हुआ मोहभंग
आठ फरवरी 1921 को शहर के बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी आए। फिराक साहब भी उनका भाषण सुनने पहुंचे।
भाषण सुनकर वह गांधी जी के मुरीद हो गए और प्रशासनिक ओहदा छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद गए। असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए और करीब डेढ़ वर्ष तक आगरा व लखनऊ की जेल में रहे।
जब चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया तो उन्हें गांधी जी का वह फैसला रास नहीं आया, लिहाजा बहुत ही कम समय में उनका गांधी से मोह भंग हो गया।
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निराला से जमकर लड़ते थे फ़िराक़ गोरखपुरी
किस्सा मुंबई का है । वहाँ फ़िराक़ के कई दोस्त थे। उनमें से एक थीं मशहूर अभिनेत्री नादिरा। उस दिन फ़िराक़ सुबह से ही शराब पीने लगे थे और थोड़ी देर में उनकी ज़ुबान खुरदरी हो चली थी।
उनके मुंह से जो शब्द निकल रहे थे वो नादिरा को परेशान करने लगे थे। जब वो फ़िराक़ के इस मूड को हैंडल नहीं कर पाईं तो उन्होंने इस्मत चुग़ताई को मदद के लिए फोन किया |
जैसे ही इस्मत नादिरा के फ्लैट में घुसीं, फ़िराक़ की आँखों में चमक आ गई और बैठते ही वो उर्दू साहित्य की बारीकियों पर चर्चा करने लगे । नादिरा ने थोड़ी देर तक उसकी तरफ देखा और फिर बोलीं, “फ़िराक़ साहब आपकी गालियाँ क्या सिर्फ़ मेरे लिए थीं?”
फ़िराक़ ने जवाब दिया, “अब तुम्हें मालूम हो चुका होगा कि गालियों को कविता में किस तरह बदला जाता है.” इस्मत ने बाद में अपनी आत्मकथा में लिखा, ‘ऐसा नहीं था कि नादिरा में बौद्धिक बहस करने की क्षमता नहीं थी, वो असल में जल्दी नर्वस हो गई थीं|’
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फिराक की अनमोल कृतियां
गुल-ए-नगमा, बज्मे जिंदगी, रंगे शायरी, मशअल, रूहे कायनात, नगमा-ए-साज, गजलिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागा, शोअला व साज, हजार दास्तान, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधी रात, परछाइयां और तराना-ए-इश्क, सत्यम शिवम सुंदरम। इसके अलावा फिराक ने एक उपन्यास ‘साधु और कुटिया’ तथा कई कहानियां भी लिखीं।
संदर्भ
रमेश चंद्र द्विवेदी, मैंने फिराक को देखा था, वाणी प्रकाशन, 1997
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में