सरदार पटेल मां की तरह गांधीजी का ख्याल रखते थे
महात्मा गांधी और सरदार पटेल के बीच मूल्यों और मानदंडों की एक गहरी एकता थी। दोनों के बीच वफादारी और व्यक्तिगत स्नेह का ऐसा बंधन था जो अंत तक अटूट रहा। गांधीजी हमेशा सरदार पटेल के प्रति सुरक्षात्मक रहते थे, क्योंकि वे उनके स्पष्टवादी और बेबाक स्वभाव से परिचित थे। उन्हें पता था कि सरदार पटेल कभी-कभी अपने भाषणों में कठोर और ‘गुस्से’ वाले लग सकते हैं, जिससे लोग उनके नेक इरादों और राष्ट्र तथा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति समर्पण को गलत समझ सकते थे।
1932 में जब गांधीजी ने यरवदा जेल में सांप्रदायिक निर्णय के मुद्दे पर आमरण अनशन किया, तो सरदार पटेल को बहुत चिंता हुई, क्योंकि वे भी महादेव देसाई और अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ उसी जेल में बंद थे। गांधीजी जानते थे कि उनका यह निर्णय पटेल को तनाव देगा। उन्होंने महादेव देसाई से पूछा कि क्या सरदार पटेल उनसे नाराज हैं।
महादेव देसाई ने उत्तर दिया, “वे बहुत मानसिक तनाव में हैं। चाहे आप उपवास के दौरान बचें या न बचें, वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आपके आसपास असंतोष, झगड़े या दुख का माहौल न हो।”
गांधीजी ने उत्तर दिया, “मैं इसे समझता हूं। क्या मुझे एहसास नहीं है कि वल्लभभाई जैसे असाधारण व्यक्ति का साथ देकर ईश्वर ने मुझ पर कितनी बड़ी कृपा की है?”
गांधीजी भी सरदार पटेल के बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर उतने ही चिंतित थे। सरदार पटेल को लिखे गए उनके लगभग हर पत्र की शुरुआत और अंत हमेशा उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ या सलाह से होता था।
सरदार पटेल मां की तरह गांधीजी का ख्याल रखते थे
सरदार पटेल, गांधीजी पर हुए शारीरिक हमलों को लेकर बहुत चिंतित रहते थे। 1934 में पुणे में गांधीजी पर हुए हमले का जिक्र करते हुए, सरदार पटेल ने 16 जुलाई 1934 को ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ में छपे बयान में कहा, “मैंने गांधीजी को लगभग दो महीने पहले ही चेताया था कि पुणे उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है, क्योंकि मुझे वहां फैल रहे जहर का अंदाजा था।”
उनके आपसी भाईचारे के बावजूद, जब भी उन्हें अपनी राय व्यक्त करनी होती थी, वे इसे बिना किसी झिझक के करते थे। वास्तव में, राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान और उसके बाद भी उनके विचारों में मतभेद बने रहे। फिर भी, उनके मतभेद इतने गंभीर नहीं थे कि उनके रिश्ते को कमजोर कर सकें या तोड़ सकें। उनके लक्ष्यों, रणनीतियों और नैतिक मूल्यों में एकरूपता इतनी गहरी थी कि कोई भी दीर्घकालिक विभाजन असंभव था।
गांधीजी और सरदार पटेल के जेल में साथ बिताए दिनों का दिलचस्प वर्णन महादेव भाई ने किया है। उन्होंने बताया है कि वल्लभभाई किस तरह मां की तरह गांधीजी का ख्याल रखते थे और हमेशा सबको हंसाते रहते थे।
गांधीजी के शब्दों में, “मेरे कैंप में एक विशेष विदूषक है। उनके अनायास किए गए मजाक मुझे हंसाते-हंसाते दोहरा कर देते हैं। उनकी उपस्थिति में दुख का अंधकार छिप जाता है। कोई भी निराशा उन्हें लंबे समय तक उदास नहीं रख सकती, और वह मुझे भी कभी उदास नहीं रहने देते। वह मेरे महात्मा होने की भी परवाह नहीं करते।”
जेल से बाहर आने के बाद, गांधीजी ने सरदार पटेल के प्रति अपने भावनात्मक स्नेह का इन शब्दों में जिक्र किया:
“मैं उनकी बेजोड़ बहादुरी से तो परिचित था ही, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उनमें मां जैसी गुण भी हैं। अगर मुझे थोड़ी भी तकलीफ होती, तो वह बिस्तर से उठ जाते थे। मेरे आराम से जुड़ी हर बात का पूरा ध्यान रखते थे।”
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गांधीजी सरदार पटेल के लिए जुते बनाना चाहते थे
गोलमेज सम्मेलन विफल होने के बाद गांधीजी और अन्य शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और दमन की नीति अपनाई गई। सरदार पटेल को गांधीजी के साथ यरवदा जेल में रखा गया और वे सोलह महीने तक साथ रहे – जनवरी 1932 से मई 1933 तक। एक घटना उस समय की है जब सरदार पटेल यरवदा जेल में गांधीजी के साथ थे। उनके पास जूते नहीं थे।
यह देखकर गांधीजी ने कहा, “मैं चमड़ा मंगवाकर तुम्हारे लिए जूते बना दूं?”
यह सुनकर सरदार पटेल मुस्कराते हुए बोले, “आप जूते बनाना जानते हैं?”
गांधीजी ने कहा, “क्यों नहीं? इसमें भला क्या मुश्किल है? कोई भी काम सीखना कठिन नहीं है।”
सरदार पटेल ने पूछा, “आपने जूते बनाना कहां से सीखा?”
गांधीजी बोले, “मैंने यह कला क्लेनबेक से सीखी थी और बाद में कई जोड़े जूते बनाए। मेरे बनाए जूतों का नमूना सोदपुर के खादी प्रतिष्ठान में अब भी रखा है।”
यह सुनकर सरदार पटेल बोले, “बापू, आपका कहना सही है, लेकिन मैं आपके बनाए जूते नहीं पहन सकता।”
गांधीजी ने पूछा, “क्यों नहीं पहन सकते? मेरे बनाए जूतों में क्या कमी है?”
सरदार पटेल ने हंसते हुए कहा, “क्या किसी ने आपके बनाए जूते पहने हैं? मुझे तो लगता है कि आपके द्वारा बनाए गए जूतों को केवल प्रदर्शनियों में ही रखा जा सकता है।”
इस पर गांधीजी हंसते हुए बोले, “तुम सही कहते हो। बंगाली सत्यानंद बोस ने मेरे द्वारा बनाए गए जूते मंगवाए थे, लेकिन पहनने के लिए नहीं, बल्कि किसी और कारण से।”
सरदार पटेल ने उत्सुकता से पूछा, “किस कारण से?”
गांधीजी ने कहा, “उन्होंने मेरे उन जूतों को पैरों में पहनने के बजाय अपने सिर की शोभा बनाया और सोदपुर के खादी प्रतिष्ठान में रख दिया। अब वहां लोग उन जूतों को देखने आते हैं।”
यह सुनकरसरदार पटेल मुस्कराते हुए बोले, “बापूजी, सही बात है। आप किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा नहीं समझते। हर कार्य को समान भावना से पूरा करते हो। आपके द्वारा बनाए गए जूते भी प्रतिष्ठान में सम्मान पाने योग्य हैं। कहते हैं न कि यश सूरज की रोशनी की तरह होता है, जो स्वतः ही फैल जाता है और लोगों को नई राह दिखाता है।”
गांधीजी मुस्कराते हुए बोले, “अगर ऐसा है, तो हर व्यक्ति को हर कार्य को समान दृष्टि से देखने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि समानता की भावना अपने आप यश और प्रतिष्ठा लाती है।”
सरदार पटेल ने सहमति जताते हुए कहा, “बिल्कुल सही।”
येरवडा जेल के दस्तावेज महात्मा गांधी –सरदार पटेल के रिश्ते के प्रमाण हैं महात्मा गांधी और सरदार पटेल के बीच का रिश्ता बहुत करीबी था। दोनों के बीच कुछ मतभेद भी रहे परंतु, सरदार पटेल गांधीजी के सिद्धांतों पर चलते रहे।दोनों के बीच वफादारी और व्यक्तिगत स्नेह का ऐसा बंधन था जो अंत तक अटूट रहा।
संदर्भ
राजमोहन गांधी, सरदार पटेल एक समर्पित जीवन, नवजीवन ट्रस्ट, अहमदाबाद,2011
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में