हॉकी के सिंह : रूप सिंह
[खेलों का इतिहास भी रोचक है। विशी सिन्हा के इस कॉलम में भारतीय खेलों की दुनिया से कुछ प्रेरणास्पद हीरोज़, कुछ रोचक क़िस्से।]
ग्वालियर में एक क्रिकेट स्टेडियम है जिसे क्रिकेट प्रेमी इस वजह से याद करते हैं कि यहाँ एकदिवसीय क्रिकेट के इतिहास में पहली बार किसी पुरुष खिलाड़ी ने दो सौ रन की पारी खेली थी। फ्लड लाइट सुविधा युक्त इस क्रिकेट स्टेडियम में ही भारत का पहला डे-नाइट प्रथम श्रेणी मैच खेला गया था – ऑस्ट्रेलिया में शेफ़ील्ड शील्ड डे-नाइट मैचों से कोई दो दशक पूर्व।
इस स्टेडियम का नाम है कैप्टेन रूप सिंह स्टेडियम ।
एक हॉकी खिलाड़ी के नाम पर क्रिकेट स्टेडियम का नाम सुनना अच्छा लगता है, लेकिन हक़ीकत यह है कि मूल रूप से यह एक हॉकी स्टेडियम ही था, जिसे क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता के चलते 1988 में क्रिकेट स्टेडियम में परिवर्तित कर दिया गया।
जादूगर ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह
भारत में हॉकी की जब भी चर्चा होती है, हमारे मन में सबसे पहला ख्याल हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द का आता है। अक्सर हमारी चर्चा ध्यानचन्द और आठ ओलिंपिक स्वर्ण तक ही सीमित रह जाती है। यह सही है कि हॉकी के इतिहास में सबसे ज्यादा गोल ध्यानचन्द के ही नाम है और यह भी सच है कि उनसे बेहतर खिलाड़ी भारत की जमीं पर आजतक नहीं हुआ।
लेकिन बहुत से और भी खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने लम्बे समय तक भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग कायम रखने में अपना योगदान दिया। वहीं कुछ ऐसे भी खिलाड़ी रहे हैं जिन्हें ध्यानचंद खुद से बेहतर खिलाड़ी मानते थे, कैप्टेन रूप सिंह भी ऐसे ही एक खिलाड़ी रहे थे।
कैप्टेन रूप सिंह का परिचय सिर्फ इतना ही नहीं था कि वे ध्यानचन्द के छोटे भाई थे। लेफ्ट-इन /फॉरवर्ड पोजीशन पर खेलने वाले रूप सिंह अपनी चपलता और दमदार शॉट लगाने की वजह से जाने जाते थे। उनके झन्नाटेदार शॉट की शक्ति देख ध्यानचंद भी कभी-कभी उन्हें चेताते थे कि कहीं दूसरे खिलाड़ी घायल न हो जाएँ।
कैप्टेन रूप सिंह का जन्म 8 सितंबर 1908 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। लोग यह समझते हैं कि रूप सिंह को ध्यानचन्द ने हॉकी खेलना सिखाया, जबकि ऐसा था नहीं। हॉकी खेलने की वजह से ध्यानचन्द को दुनिया घूमने का मौक़ा मिला था और इसी वजह से रूप सिंह भी खेलने को प्रेरित हुए।
एम्सट’डैम ओलिंपिक (1928) स्वर्ण जीतने के बाद जब ध्यानचन्द भारत वापस लौटे तो हर रोज सुबह-शाम उनसे मिलने वाले दोस्तों/परिचितों /स्कूली खिलाड़ियों की भीड़ लग जाती थी और उस समय ध्यानचन्द लोगों को ओलिंपिक खेलों के दौरान इंग्लैण्ड, नीदरलैंड्स , जर्मनी और बेल्जियम देशों के सफ़र के किस्से सुनाते थे।
कैसे उनका जहाज़ ‘कैसर-ए-हिन्द’ अदन की खाड़ी, पोर्ट सईद, लाल सागर, आधुनिक इंजीनियरिंग का कमाल – स्वेज नहर और फिर भूमध्य सागर से होता हुआ टिलबरी डॉक्स (लन्दन) पहुँचा। ओलिंपिक खेलों से दो वर्ष पूर्व ध्यानचन्द सुदूर न्यूजीलैण्ड का सफ़र कर ही चुके थे। रूप सिंह को लगा कि यदि वे भी हॉकी के अच्छे खिलाड़ी बन जाएँ तो उन्हें भी दुनिया घूमने को मिलेगा।
इन्टर-स्टेट टूर्नामेंट में ध्यानचन्द भारतीय (ब्रिटिश) सेना की टीम से खलते थे, जबकि रूपसिंह संयुक्त प्रांत की टीम से खेलते थे। स्थानीय स्तर पर, दोनों ‘झांसी हीरोज़’ क्लब से खेलते थे।
शानदार कैरियर
लॉस एंजेल्स ओलिंपिक्स (1932) में रूप सिंह ने पहली बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारतीय टीम ने अपने पहले मैच में जापान को एकतरफा मुकाबले में 11-1 से हराया , जिसमें से तीन गोल रूप सिंह ने किये थे। फिर भारतीय टीम ने मेजबान अमेरिका को उन्ही के दर्शकों के सामने 24-1 से धो डाला। इस मैच में ध्यानचंद ने 8 गोल किए और कैप्टेन रूप सिंह ने 10 गोल किये। अमेरिकी मीडिया में ‘हॉकी ट्विन्स’ के नाम से चर्चित दोनों भाइयों की बाक़माल जुगलबन्दी का विपक्षी टीमों के पास कोई जवाब नहीं था। अपने पहले ही ओलिंपिक में 13 गोल करने वाले रूप सिंह इस ओलिंपिक खेलों में दद्दा को पीछे छोड़ सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी बने। स्थानीय मीडिया ने रूपसिंह को ‘लॉयन ऑफ़ हॉकी’ नाम दिया।। भारतीय टीम ने लगातार दूसरी बार ओलिंपिक स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया था।
चार साल बाद हुए बर्लिन ओलिंपिक्स (1936) में ध्यानचंद भारतीय टीम के कप्तान बनाए गए। 14 दिन की थका देने वाली समुद्री यात्रा के बाद मार्खसेईय पहुँचने पर भारतीय टीम को वहाँ से पेरिस और फिर आगे पेरिस से बर्लिन की यात्राएं ट्रेन के तीसरे दर्जे में बैठकर करनी पड़ी थी।
ओलिंपिक पूर्व खेले गए एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम जर्मन टीम से 1-4 से पराजित हो गई। अस्वस्थता की वजह से रूप सिंह इस मैच में नहीं खेल सके थे। इस झटके से उबरते हुए भारतीय टीम ने ओलिंपिक के मैचों में में हंगरी को 4 – 0, फिर अमेरिका को 7-0, जापान को 9-0 हराया।
अली दारा के भारतीय टीम में शामिल होने से और मजबूत हो चुकी भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 से हराया और बिना एक भी गोल खाए फाइनल में पहुँच गई। फिर आया 15 अगस्त का मुबारक दिन, जब भारतीय टीम ने जर्मन टीम को उन्ही के मैदान में उनके अपने 40हजार दर्शकों से खचाखच भरे स्टेडियम में 8-1से परास्त किया और स्वर्ण पदक जीत गोल्डन हैट-ट्रिक बनाई।
भारतीय टीम की तरफ से रूप सिंह ने पूरे ओलिंपिक टूर्नामेंट में 8 गोल किये और सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ियों की सूची में ध्यानचंद के बाद दूसरे स्थान पर रहे।
म्यूनिख ओलिंपिक (1972) आयोजन के समय जर्मनी में हुए पूर्ववर्ती बर्लिन ओलिंपिक (1936) के प्रदर्शन की याद में रूप सिंह के नाम पर एक सड़क का नाम रखा गया। लन्दन ओलिंपिक्स (2012) के दौरान ओलिंपिक खेलों के दिग्गज खिलाड़ियों के नाम लन्दन अंडरग्राउंड/ट्यूब (मेट्रो) स्टेशन के नाम मेंजोड़े गए थे और एक ट्यूब स्टेशन के नाम में कैप्टेन रूप सिंह का नाम भी जोड़ा गया था।
सिंधिया राजघराने से था सम्बन्ध
जहाँ ध्यानचन्द भारतीय सेना (ब्रिटिश इंडियन आर्मी) में थे, वहीं रूप सिंह सिंधिया राजघराने की सेना में थे। एक और रोचक जानकारी ये है कि रूप सिंह ने ग्वालियर स्टेट की तरफ से रणजी मैच भी खेला था।
16 दिसम्बर 1977 को ग्वालियर में रूप सिंह ने अंतिम सांस ली। उनके पुत्र भगत सिंह भी हॉकी के (राष्ट्रीय स्तर के) खिलाड़ी रहे।
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विश्वरंजन हैं तो क़ानून के प्रोफेशनल लेकिन मन रमता है खेलों और क्राइम फिक्शन में। कई किताबें लिखी हैं और ढेरों लेख।