एटम बम और जवाहरलाल नेहरू
1 जुलाई, 1946 को बिकनी द्वीप समूह पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अणुबम का परीक्षण करने पर नेहरू का बयान विश्व शांति को लेकर उनकी चिंता को बताता है- सं
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अब मुझसे एटमी बमों के परीक्षणों के बारे में मेरी राय पूछी गयी। उस समय मैं कुछ नहीं बोला, लेकिन मेरा ध्यान अपनी सभ्यता की हाल की इस तरक्की की ओर बराबर खिंचता गया, और आगे क्या होगा, इसकी अनगिनत तस्वीरें खिंचने लगी।[i]
अमेरिका का परीक्षण, तीसरी जंग की ओर इशारा
सबसे पहली बात मुझे जो अजीब लगी कि यह परीक्षण कितनी ताम-झाम और शोहरत के साथ हुआ, जिसके लिए अमेरिका मशहूर है। आमतौर पर जंगी दफ्तर अपने हाल के हथियारों के बारे में कोई चिल्लपों नहीं करते और खास तौर से उसे पूरी तरह छिपा कर नहीं रखते हैं। यह सही है कि इस तरह के परीक्षण को बिल्कुल छिपाया नहीं जा सकता। लेकिन फिर भी, जब तक कोई खास मकसद नहीं हो, तब तक जानबूझ कर इसका प्रचार करने की भी कोई ज़रूरत नहीं थी।
इसकी क्या वजह हो सकती है? यही न कि दुनिया को और सभी लोगों को अमेरिका की यह ताकत बता दी जाए कि अमेरिका किसी भी कौम या मुल्क को, जो उसकी पालिसी से मेल नहीं रखते हों, कभी भी खत्म कर सकता है। यह एक चुनौती थी, धमकी थी। दुनिया के विदेशमंत्री आपस में जो बातें करते हैं और यू.एन.ओ. में जो बहस-मुबाहिसे होते हैं, उसकी यह तस्वीर थी। यह असली जंग माने तीसरी जंग की ओर इशारा था।
अमन-चैन लाने या लोगों के दिलों में उस खौफ को दूर भगाने का यह तरीका नहीं है, तो अक्सर जंग का सबब क्या है? जाहिर है यह डर बढ़ेगा, सारी मुल्क और सारी कौम इसकी गिरफ्त में आ जायेगी और हर कोई इस हथियार को हासिल करना चाहेगा और इससे अपने बचाव के लिए तदबीर सोचेगा।
अमन-चैन के धुंधले पड़ चुके सपने
अमन-चैन हमसे बहुत दूर है, इसके बारे में सपने धुंधले पड़ चुके हैं और मनुष्य जाति अपनी तबाही की ओर बढ़ रही है। हमें एटम बम मिल गया, जो सारी दुनिया को उड़ा सकता है। लेकि कोई भी बम हमारे नेताओं और हुक्मरानों के दिमाग को नहीं झकझोर सकते है, जो अपने दकियानूसीपने से निकल नहीं सकते और जो अब भी अपने पुराने ख्यालों को बनाये रखना चाहते हैं।
हम चार तरह की आजादी और उस बहादुर नयी दुनिया के बारे में भी काफी सुन चुके हैं, लेकिन जो आजादी इंसान को अब मिलने वाली है, वह मरने और अपने जिस्म को बोटी-बोटी कर उड़ा देने की आजादी होगी; साथ ही लोकतंत्र, आजाद रहने और चार और तरह की आजादी भी होगी।
क्या लफ्जों के मायने अब कुछ नहीं रह गये हैं? क्या लोगों को कोई भरोसा नहीं रह गया? यह जरूर पागलपन की निशानी है और हमारे महान नेता, जो हमारी तकदीर का फैसला करते हैं, खतरनाक हो रहे हैं। वह सिर्फ अपने बारे में सोचने हैं, वे पागल रोगी हैं, उन्हें घमंड हो गया है, वे अपनी ताकत के नशे में है। वे छोटी छोटी बातों पर अड़े हुए हैं। वे सही तरीके से सोचने और सही काम करने के बजाय सारी दुनिया पर कहर बरसाने और उसे तबाह करने पर तुल गए हैं।
एटम बम का यह रास्ता शांति या आजादी की ओर नहीं जाता
यह बड़े ताज्जुब और शर्म की बात है कि ये लोग ऐसे मौके पर पागल हो गए हैं, जब दुनिया अपने लक्ष्य को पाने के काफी नजदीक थी, सदियों से जिसे चाहा जा रहा था और जिसका सपना देखा जा रहा था। दुनिया के हर मुल्क में रहने वाले लोगों के लिए शांति, सहयोग और खुशहाली उनकी पहुंच में है। लेकिन शायद ईश्वर को इंसान की तकदीर से डाह होने लगी थी और उसने उसे पागल कर दिया है।
कोई नहीं कह सकता है कि इंसान की तकदीर में सिर्फ यही पागलपन या मौत लिखी है या कुछ अच्छा भी लिखा है। लेकिन यह तय है कि एटम बम का यह रास्ता शांति या आजादी की ओर नहीं जाता।
यह सिर्फ एक ही मकसद को पूरा कर सकता है कि वह उन लोगों को खत्म कर दे, जो हुकूमत में ताकत के नशे में हैं, जो दूसरों पर हावी होना चाहते हैं, जिन्हें सिर्फ अपनी कौम प्यारी है और दूसरों को बराबरी का दर्जा नहीं देना चाहते है, जो दूसरों की मेहनत और जिल्लत पर जिंदा हैं, जो तब खुशहाल रह सकते हैं जबकि बाकी लोग भूंखे रहें और मरते रहें।
संदर्भ-स्त्रोत
[i] Frank Moraes, Jawaharlal Nehru A Biography, Jaico Publushing House, Page no-426
1 जुलाई, 1946 को बिकनी द्वीप समूह पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अणुबम का परीक्षण करने पर, 2 जुलाई, 1946 के नेशनल हेराल्ड में प्रकाशित संपादकीय से, सेलेक्टेड वर्क्स, भाग 15 में पेज न. 543-44 पर संकलन
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में