महात्मा गांधी ने क्या बताया हिन्दू होने का मतलब
20.10.1927 को यंग इंडिया के अपने एक लेख में महात्मा गांधी ने अपने हिन्दू होने के कारण पर एक लेख लिखा था।
जब महात्मा गांधी से पूछा गया- आप हिन्दू क्यों हैं…
महात्मा गांधी से एक अमरीकी बहन जो अपने को हिन्दुस्तान का यावज्जीवन मित्र कहती हैं, लिखती हैं: चूंकि हिन्दू-धर्म पूर्व के मुख्य धर्मों में से एक धर्म है, और चूंकि आपने ईसाई-धर्म और हिन्दू धर्म का अध्ययन किया है, और उस अध्ययन के आधार पर अपने आप को हिन्दू घोषित किया है, मैं आपसे अपनी इस पसन्दगी का कारण पूछने की अनुमति चाहती हूं।
हिन्दू और ईसाई धर्म दोनों ही मानते हैं कि मनुष्य की प्रधान आवश्यकता है ईश्वर को जानना, और सच्चे मन से उसकी पूजा करना। यह मानते हुए कि ईसा परमात्म के प्रतिनिधि थे, अमरीका के ईसाइयों ने अपने हजारों पुत्रों और पुत्रियों को हिन्दुस्तानवालों की ईसा के बारे में बतलाने के लिए भेजा है।
क्या आप कृपा करके बदले में ईसा की शिक्षाओं के साथ-साथ हिन्दू धर्म की तुलना करेंगे और हिन्दू धर्म की अपनी व्याख्या देगें? इस कृपा के लिए मैं आपका हार्दिक आभार मानूंगी।
कई मिशनरी सभाओं में अंग्रेज और अमरीकी मिशनरियों से मैंने यह कहने का साहस किया है कि आगे चर्चा ईसा के बारे में हिन्दुस्तान को बताने से बाज आते और सरमन आन द माउंट में बताए गए ढंग से अपना जीवन बिताते, तो भारत उन पर शक करने के बदले अपनी सन्तानों के बीच रहने की कद्र करता और उनकी उपस्थिति से लाभ उठाता।
अपने इस विचार के कारण मैं अमरीकी मित्रों को हिन्दू-धर्म के बारे में बतौर बदले के कुछ बता नहीं सकता। अपने धर्म के बारे में, विशेष रूप से धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से लोग दूसरों से कुछ कहें इसमें मेरा विश्वास नहीं है। विश्वास में किसी को कुछ बताने की गुंजाइश नहीं है। विश्वास पर तो आचरण करना होता है और तब वह अपना प्रचार स्वयं करता है।
और सिवाय अपने जीवन के और किसी अन्य ढंग से हिन्दू-धर्म की व्याख्या करने के योग्य मैं अपने को नहीं मानता। और आगर मैं लिखकर हिन्दू धर्म को समझा नहीं सकता तो ईसाई-धर्म से उसकी तुलना भी नहीं कर सकूंगा। इसलिए मैं तो सिर्फ इतना ही कर सकता हूं कि यथासम्भव संक्षेप में मैं बताऊं कि मैं हिन्दू क्यों हूं ?
सैद्धान्तिक कट्टरता नहीं है, हिन्दू धर्म में
मैं वंशागत गुणों के प्रभाव में विश्वास रखता हूं, और मेरा जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ है इसलिए मैं हिन्दू हूं। अगर मुझे यह अपने नैतिक बोध या आध्यात्मिक विकास के विरुध लगे तो मैं इसे छोड़ दूंगा।
अध्ययन करने पर जिन धर्मों को मैं जानता हूं उनमें मैंने इसे सबसे अधिक सहिष्णु पाया है। इसमें सैद्धान्तिक कट्टरता नहीं है, यह बात मुझे आकर्षित करती है क्यों इस कारण इसके अनुयायी को आत्माभिव्यक्ति का अधिक-से-अधिक अवसर मिलता है।
हिन्दू-धर्म वर्जनशील नहीं है, अत: इसके अनुयायी न सिर्फ दूसरे धर्मों का आदर कर सकते हैं बल्कि वे सभी धर्मों की अच्छी बातों को पसन्द कर सकते हैं और अपना सकते हैं। अहिंसा सभी धर्मों में है मगर हिन्दू धर्म में इसकी उच्चतम अभिव्यक्ति और प्रयोग हुआ है।(मैं जैन और बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म से अलग नहीं गिनता) हिन्दू धर्म न सिर्फ अभी मनुष्यों की एकात्मता में विश्वास करता है बल्कि सभी जीवधारियों की एकात्मा में विश्वास करता है।
मेरी राय में हिन्दू धर्म में गाय की पूजा मानवीयता के विकास के दिशा में उसका एक अनोखा योगदान है। सभी जीवों की एकात्मता और इसलिए सभी प्रकार के जीवन की पवित्रता में इसके विश्वास का यह व्यावहारिक रूप है। भिन्न योनियों में जन्म लेने का महान विश्वास, इसी विश्वास का सीधा नतीजा है।
अन्त में, वर्णाश्रम धर्म के सिद्धान्त की खोज सत्य की निरन्तर खोज का अत्यन्त सुन्दर परिणाम है। ऊपर बतलाई बातों का परिभाषा देखकर मैं इस लेख को भारी नहीं बनाऊंगा। मैं तो यहां सिर्फ इतना ही कहूंगा कि
गौ-भक्ति और वर्णाश्रम के आज के ख्यालात, मेरी समझ में, मूल गौ-भक्ति और वर्णाश्रम की विकृतियां भर हैं।
जो चाहें, वे यंग इंडिया के पिछले अंकों में वर्णाश्रम और गौ-भक्ति की परिभाषा देख सकते हैं। मैं निकट भविष्य में ही वर्णाश्रम पर कुछ कहने की आशा रखता हूं। इस अत्यन्त संक्षिप्त खाके में तो मैंने सिर्फ हिन्दू धर्म की वे विशेषताएं बतलाई हैं जो मुझे हिन्दू बनाए हुए है।
संदर्भ स्त्रोत
मूल स्त्रोत, यंग इंडिया, 20.10.1927
विचार का आईना, महात्मा गांधी, सम्पादक-अच्युतानन्द मिश्र, श्रृंखला सम्पादक-बद्री नारायण, लोकभारती प्रकाशन, राजकमल, दिल्ली,2023, पेज न.-30-31
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में