मालवा अंचल के प्रथम बहादुर बलिदानी : कुँवर चैन सिंह
कुँवर चैन सिंह को मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के प्रथम बहादुर बलिदानी होने का गौरव प्राप्त है । वह इतने शक्तिवान थे कि उन्होंने अपनी तलवार के एक ही प्रबल आघात से अंग्रेज़ों की पंचधातु से बनी तोप को चीर दिया था। उनकी वीरगाथा आज भी हरबोलों द्वारा गायी जाती है-
चैन सिंह राजा की कथा क्या बढ़ाई,
फ़िरंगियों को भुला दी रे लड़ाई ।
कुँवर चैन सिंह कौन थे?
भोपाल के निकट स्थित नरसिंहगढ़ स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व एक स्वतन्त्र राज्य था। नरसिंहगढ़ की प्रसिद्धि अपनी मनोरम प्राकृतिक सुषमा के कारण थी। नरसिंहगढ़ को ‘मालवा का काश्मीर’ कहा जाता था ।
नरसिंहगढ़ के राजा थे- सौभाग्य सिंह । सौभाग्य सिंह के कुल दीपक कुँवर चैन सिंह युवराज थे । कुँवर चैन सिंह बचपन से अत्यन्त स्वाभिमानी थे। उनकी आँखों में भारत माता को अंग्रेज़ों की दासता से मुक्त कराने का स्वप्न तैरता रहता था।
1818 में कैप्टन स्टेवर्ड और भोपाल के नवाब नज़रूरद्दौला नज़र ख़ान के मध्य एक अनुबन्ध हुआ था। इस समझौते के अनुसार अंग्रेज़ों ने सीहोर में अपनी छावनी बना ली थी।
मैडाक को प्रथम राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में सीहोर में नियुक्त किया गया था। सीहोर छावनी में एक हज़ार सैनिक थे, जिनका वेतन भोपाल राज्य के कोषालय से दिया जाता था। अंग्रेज़ों ने भोपाल के साथ ही नरसिंहगढ़, खिलचीपुर और राजगढ़ रियासतों के राजनीतिक अधिकार भी मैडाक को दे दिये थे।
कुँवर चैन सिंह ने ग़द्दार दीवान की हत्या कर दी
अंग्रेज़ों ने अपनी साम्राज्यवादी नीति के अनुरूप नरसिंहगढ़ रियासत के दीवान आनन्दराम बख़्शी को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया था । दीवान अपने राज्य की गुप्त जानकारियाँ अंग्रेज़ों को देता रहता था।
जब कुँवर चैन सिंह को दीवान की ग़द्दारी के बारे में पता चला तब उन्होंने अपने पिता के विरोध को अनदेखा करते हुए दीवान की हत्या कर दी । नरसिंहगढ़ का एक और मन्त्री रूपराम बोहरा भी देशद्रोही बन गया था ।
इन्दौर के होल्कर राजा ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संगठित होने के लिए मध्य भारत के सभी देशी रजवाड़ों की एक गुप्त सभा की थी, जिसमें कुँवर चैन सिंह भी सम्मिलित हुए थे । मन्त्री रूपराम बोहरा ने यह जानकारी मैडाक को दे दी थी।
यह पता चलने पर कुँवर चैन सिंह ने ग़द्दार रूपराम को भी मौत के घाट उतार दिया था । रूपराम के भाई ने कुँवर चैन सिंह के विरुद्ध कलकत्ता में अंग्रेज़ गवर्नर जनरल को और सीहोर में मैडाक को शिकायत की थी। गवर्नर जनरल ने मैडाक से इस बारे में जवाब तलब किया।
मैडाक ने चैन सिंह को अपने सामने उपस्थित होने का सन्देश भेजा परन्तु कुँवर चैन सिंह सीहोर नहीं गये। मैडाक ने बैरासिया में शिविर लगाकर चैन सिंह को वहाँ बुलाया । कुँवर चैन सिंह अपने दल-बल सहित बैरसिया गये और मैडाक से मिले ।
मैडाक ने कुँवर चैन सिंह के सामने तीन शर्तें रखी। पहली शर्त यह थी कि कुँवर चैन सिंह हमेशा के लिए नरसिंहगढ़ छोड़कर काशी चले जायें। दूसरी शर्त यह थी कि दो-तीन वर्षों तक नरसिंहगढ़ राज्य अंग्रेज़ों के अधीन रहे । तीसरी शर्त थी कि नरसिंहगढ़ क्षेत्र में होने वाली अफीम की फसल की ख़रीद केवल अंग्रेज़ ही करेंगे। मैडाक ने कहा कि यदि शर्तें नहीं मानी गयीं तो कुँवर चैन सिंह के विरुद्ध दीवान और मन्त्री की हत्या का मुकदमा चलाया जायेगा ।
कुँवर चैन सिंह ने मैडाक की शर्तें ठुकरा दी। मैडाक ने कुँवर चैन सिंह को पुनः सीहोर बुलवाया।
मेरे लफ़्ज़ सितारों की तरह हैं, वे मिटते नहीं“- रेड इंडियन सरदार सीएटल
जब मैडाक ने चैन सिंह की हत्या करने की साजिश रची
कुँवर चैन सिंह अपने 43 विश्वस्त साथियों के साथ 24 जून 1824 को सीहोर गये। मैडाक ने कुँवर चैन सिंह की तलवार की प्रशंसा की और देखने के लिए तलवार माँगी। कुँवर चैन सिंह ने तलवार दे दी, तब मैडाक ने दूसरी तलवार भी माँगी । चैन सिंह निहत्था कर अपनी गिरफ़्तारी अथवा हत्या के इरादे को भाँप चुके थे। उन्होंने दूसरी तलवार देने से यह कह कर इनकार कर दिया कि राजपूत की कमर कभी शस्त्र से ख़ाली नहीं रहती है।
इस बात पर तकरार बढ़ने पर मैडाक ने अपने सैनिकों को कुँवर चैन सिंह को बन्दी बनाने का आदेश दे दिया । बन्दी बनाया जाता, इसके पहले ही कुँवर चैन सिंह ने वीरतापूर्वक मैडाक पर तीव्रता से आक्रमण कर दिया। मैडाक घबरा गया और जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। कुँवर चैन सिंह ने मैडाक का पीछा किया। सीहोर के वर्तमान तहसील चौराहे पर चैन सिंह के साथियों और अंग्रेज़ों के मध्य भीषण संग्राम हुआ ।
कुँवर चैन सिंह के साथ थोड़े ही सैनिक थे और उनके समक्ष अंग्रेज़ों की विशाल सेना थी । देशप्रेमियों ने वीरतापूर्वक मुकाबला किया परन्तु कुछ ही समय में कुँवर चैन सिंह के सभी साथी शहीद हो गये ।कुँवर चैन सिंह और उनके दो बहादुर अंगरक्षक हिम्मत ख़ाँ और बहादुर ख़ाँ ने अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिये। सीहोर के दशहरा मैदान में लड़ते हुए कुँवर चैन सिंह ने अपनी तलवार के वार से अंग्रेज़ों की अष्टधातु की तोप को चीर दिया परन्तु तलवार तोप में फँस गयी। इस अवसर का लाभ उठाकर अंग्रेज़ तोपची ने कुँवर चैन सिंह की गर्दन काट डाली।
गर्दन के धड़ से अलग हो जाने पर भी कुछ समय तक कुँवर चैन सिंह अपने दोनों हाथों से तलवार चलाते रहे । उनके दोनों अंगरक्षक भी वीरगति को प्राप्त हुए। अंग्रेज़ों ने कुँवर चैन सिंह के वफ़ादार पालतू जानवर को भी मार डाला । कुँवर चैन सिंह का वफ़ादार घोड़ा उनके शव को लेकर नरसिंहगढ़ पहुँचा ।
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मालवा अंचल के लोकगीतों में जीवित है कुँवर चैन सिंह
सीहोर में दशहरा बाग़ मैदान में कुँवर चैन सिंह की रानी ने अपने पति की स्मृति में छतरी बनवाई। छतरी के पास ही उनके दोनों अंगरक्षकों की कब्रें भी हैं। रानी ने कुँवर चैन सिंह के बलिदान की पावन स्मृति में परशुराम सरोवर के पास एक मन्दिर भी बनवाया था, जिसे ‘कुँवरानी का मन्दिर’ कहा जाता है।
कुँवर चैन सिंह सीहोर और निकटवर्ती गाँवों में पूजे जाते हैं । सीहोर में उनकी समाधि पर और आसपास के कई गाँवों में उनकी पुण्यस्मृति में निर्मित चौरों पर देशभक्त मन्नतें माँगते हैं और अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। मालवा के बलिदानी सपूत की यशोगाथा लोक-गीतों में गुंजायमान है। विशेषतः यह लोक-गीत आज भी प्रचलित है-
भैया दुवारता भाई बोल्या, नी हो दादाजी तमारी लड़वा की वेस
पालणा पै बेठन्ता माजी बाई बोल्या, नी रे बेटात्यारी लड़वा की वेस
सेज्या संवारता गोरी हो बोल्या, नी ओ आलोजा थांकी लड़वा की वेस
हिदर ख़ाँ बिदर ख़ाँ यूँ कर गोल्या, एकला सो पड़ ग्यो है काम
भाई भतीजा धरे रे रथा चेनसिंह एकला से पड़ ग्यो है काम
सीस कटायो ने घाट बंधायों, मुख पै उड़े रे गुलाल
सीवर में डेरा डाल्या, ते धड़ से करयो है जुवाब ।
अर्थात, “राजा सोबल सिंह (सौभाग्य सिंह) के सुपुत्र चैन सिंह ने अपने मुल्क में राज किया। कचहरी में बैठे हुए महाराज साहब ने मना किया कि राजकुमार अभी तुम्हारी उम्र लड़ने की नहीं है। भैंसों को दुहाते हुए भाई ने कहा कि दादा भाई आपकी यह उम्र अभी युद्ध करने की नहीं है । पालने में बैठी हुई राजमाता बोलीं कि बेटा, तुम्हारी यह उम्र संग्राम में जूझने की नहीं है ।
निवास में सेज सँवारती गौरी ने कहा कि आलीजा (प्रियतम), आपकी यह उम्र समर में जाने की नहीं है । हिदर ख़ाँ और बिदर ख़ाँ (हिम्मत ख़ाँ और बहादुर खाँ) बोले कि देखो इस युद्ध में कुँवर चैन सिंह अकेले पड़ गये हैं। सभी भाई- भतीजे घर में रह गये हैं और लड़ाई के मैदान में चैन सिंह अकेले कूद पड़े हैं। अपनी आज़ादी के लिए शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने शीश कटा दिये। इनके मुखमण्डल आत्मोसर्ग की आभा ( गुलाल ) से मण्डित हैं।
सीहोर की छावनी में इन वीरों ने जैसे डेरा जमा लिया है। शीश कट जाने पर भी मुण्डविहीन धड़ से कुँवर चैन सिंह फ़िरंगी फ़ौज का मुँहतोड़ जवाब देते रहे।”
संदर्भ
KAPIL MEWADA , MALWA KE MAHANAYAK-KUNWAR CHAIN SINGH, NATIONAL BOOK TRUST,INDIA 2023
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में