किताबें बेचने वाले क्रान्तिकारी शहीद पीर अली खां
हिन्दुस्तान के पहले स्वतंत्रता संग्राम में न जाने कितने ही आज़ादी के मतवाले सूरमा हुए जिनकी बलिदानों से आज़ादी की
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हिन्दुस्तान के पहले स्वतंत्रता संग्राम में न जाने कितने ही आज़ादी के मतवाले सूरमा हुए जिनकी बलिदानों से आज़ादी की
औपनिवेशिक दौर में देश का पढ़ा लिखा व्यक्ति हो या अनपढ़, गरीब हो या धनवान, शहर का रहने वाला
[रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974) हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि और लेखक हैं। वह राज्यसभा के सदस्य थे, तब लगभग 12 वर्ष
विद्यागौरी नीलकंठ न तो पितृसत्ता के ख़िलाफ़ विद्रोही थी न ही एक उत्साही नारीवादी, जैसा आज हम इस शब्द से
[शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला (1905-1981) जिन्हें शेर-ए-काश्मीर भी कहा जाता है, कश्मीर के सबसे महत्त्वपूर्ण नेताओं में थे। आज़ादी के बाद
अंग्रेज़ी शासन का इतिहास भारत की लूट का इतिहास भी है। इंग्लैड में चलने वाली फैक्ट्रियों का उत्पादन बढ़ाने के
खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका था। बम फेंकने
भारत देश का हैसियदार व्यक्ति हो या साधारण, देश की आज़ादी का जज़्बा सभी के मन में पल रहा था।
क्रांतिकारी विचारक, संगठनकर्ता, वक्ता, प्रचारक आदि के रूप में भगवती चरन अक्सर याद किए जाते है।इसके साथ-साथ आदर्श के प्रति
आज़ादी के आन्दोलन में कई युवा क्रांतिकारी हुए जिनका जीवन काफी छोटा था लेकिन इस छोटे से जीवन में उन्होंने
हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम मशहूर हैं, जिनके नेतृत्व में हज़ारों देशवासियों ने जंगे आज़ादी
मार्टिन लूथर किंग, जूनियर(1929-1968) अमेरिका में नागरिक आन्दोलन (1955-1968 में अपनी हत्या तक) के सबसे बड़े प्रवक्ता थे। वह अहिंसा
खुद पर आत्मविश्वास और हौसले के दम पर, असंभव लगने वाले काम को अंजाम दिया जा सकता है और सफलता
यूरोप में 14वीं से 16वीं शताब्दी की अवधि को रेनेसांस (पुनर्जागरण/नवजागरण) की अवधि कहा गया है. यह आधुनिक विज्ञान के
हिन्दुस्तान की जंग-ए-आज़ादी में शामिल किसी साधारण से व्यक्ति का क़िरदार भी छोटा नहीं था। वली ख़ान आज़ादी के एक
सरदार पटेल ने आजादी के एक साल बाद 16 अगस्त 1948 के भाषण में विभाजन के बाद देश में शांति
18वीं सदी में भारतीय शिक्षा के विषय पर गठित कमीशन जिसे भारतीय शिक्षा आयोग भी कहा गया। भारतीयों के शिक्षा
बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपने संपादन में भगवानदास माहौर, सदाशिवराव मलकापुरकर और शिव वर्मा के सहयोग से यश की धरोहर शहीद-ग्रन्थ-माला
भारत के पूर्व रॉ प्रमुख ए एस दुलत की तीसरी क़िताब “अ लाइफ़ इन द शैडोज” कई मायनों में एक
बसवन्ना: कर्नाटक के संत जिन्होंने दिया कुरीतियों के खिलाफ सुधार का नारा जब मई 2023 में यह लेख लिखा जा
1913 में जब रवीन्द्रनाथ को नोबेल पुरस्कार मिला था तो नोबेल कमेटी की प्रशस्ति घोषणा में कहा गया: उन्होंने अपनी
मोतीलाल नेहरू को अक्सर जवाहरलाल नेहरू के पिता के रूप में ही जाना जाता है। लेकिन बचपन से संघर्ष
सामाजिक मुद्दों के लिए जीवन समर्पित करने वाली मृदुला साराभाई मृदला साराभाई वह महिला जो आजादी के आंदोलनों में सफेद
मार्क्स यदि जीवित होते तो 5 मई 2018 को 202 वर्ष के हो गए होते। तो क्या? क्या मार्क्स के
औपनिवेशिक भारत में जब आज का बांग्लादेश भारत का हिस्सा हुआ करता था, तब एक यूरोपियन क्लब के बोर्ड पर
बीती रात दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों और दिल्ली पुलिस के बीच झपड़ हो गई। पहलवानो का
सन 1541 ई. में जब शेरशाह पटना के सामरिक महत्व को समझते हुए यहां किले का निर्माण करवा रहा था
अंग्रेजी के सबसे प्रसिद्ध उपन्यासकारों में से एक चार्ल्स डिकिन्स ने “पिकविक पेपर्स” नाम से एक उपन्यास लिखा था। यह
बलराज साहनी हिन्दी सिनेमा में अपनी तरह के अदाकार रहे हैं। फिल्म दो बीघा जमीन में वह मजदूर किसान जिसको
मई दिवस यानी अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस। श्रम यानी सिर्फ़ मर्दों का श्रम? औरतों की मेहनत पर ध्यान क्यों नहीं जाता?
सत्यम सत्येन्द्र पाण्डेय आठ घंटे काम,आठ घंटे मनोरंजन और आठ घंटे आराम औद्योगिक पूंजीवादी क्रांति ने सामंतवादी उत्पादन संबंधों को
1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू होने पर सावरकर ने एक बार फिर ब्रिटिश सरकार से रिहाई के लिए याचिका प्रस्तुत
अंग्रेजी की पहली भारतीय महिला उपन्यासकार और सम्पादक- द इंडियन लेडीज़ मैगज़ीन –कमला सत्यानन्दन ने कहा था “रमाबाई भारत की
संविधान सभा में अहम भूमिका निभाने वाली महिला: अम्मू स्वामीनाथन अम्मू स्वामीनाथन संविधान तैयार करने के लिए 425
समय और समाज को सत्य का आईना दिखाती पंडिता रमाबाई समय और समाज की आलोचना करना कभी भी आसान नही